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Showing posts from September, 2014

पैथालोजिकल पोस्टमार्टम (pathological postmortem )

सूक्ष्म कथा : पैथालोजिकल पोस्टमार्टम ( ‘कफ़न’ को याद करते हुये ) ************************** ************** “हम लोगों आखिर हार गये थे | दो हफ्तों से , बेड नबर १७ के मरीज को हमारे डीन पैथालोजिकल अध्ययन के रूप खुद देख रहे थे | सारी दवाइयां उस बच्ची के सिकुड़े लीवर को आकार में नहीं ला सकी थी | जब हमने उसे मरा घोषित किया तो उसके साथ आयी उसकी माँ और नानी के चेहरों पर दुःख और राहत एक साथ दिखी | वे उड़िय ा लेबर थे जो शहर के ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए ठेके पर लाये गये थे | शायद अब वे अपनी रोज़ी पर वापस लौट सकती थीं |वे हमारे देखते देखते बॉडी को लेकर बाहर निकल गये | लेकिन डीन को जैसे ही खबर हुई वे उबल पड़े कि बॉडी को जाने कैसे दिया ?उसको रोको उसका पैथालोजिकल पोस्टमार्टम केस को समझने के लिए जरूरी है | हमने उल्टे पाँव बॉडी के लिये दौड़ लगायी वे लोग मेन गेट के बाहर ही मिल गये | माँ तो कुछ नहीं बोली लेकिन नानी अड़ गयी कि ‘बेटी अपनी मौत मरी है ..उसे चीर फाड़ नहीं होने दूँगी.तुम लोग उसका गुर्दा कलेजी सब निकाल लोगो|’.. उसकी अड़ी पर देखते देखते मजमा जमा हो गया और बॉडी को वापस पाना मुश्किल हो गया | अंत में अस्पताल क

सफेदा (drug abuse )

सूक्ष्म कथा : सफेदा  ++++++++++++++++++++++ प्लेटफॉर्म नम्बर ४ की सीढ़ी पर भीड़ जमा थी | बीच में एक हवलदार लाश का पंचनामा बना रहा था | मैंने भी भीड़ के भीतर सर डाला तो देखा कि एक १० – १२ बरस का बच्चा होगा ...मरियल और मैला सा .. शर्ट और पेंट उम्र से बड़े और फटे .. मुठ्ठी में एक रुमाल भिंचा था मानो उसे भींचकर सो गया हो.... हवलदार बडबडा रहा था “इसकी **** नशेड़ी था ..भो***...दिन का नाश कर दिया स्याले ने . .” मैंने गौर से देखा.. ....अरे ये तो ‘वो’ ही था | ‘वो’ मुझे कई दिनों से लगातार मिल रहा था | इंटर सिटी में घुसता और शर्ट उतारकर फर्श साफ़ करने लगता और फिर भीख मांगता | मुझे लगा यह अच्छा केस मटेरियल हो सकता है,सो मैं धीरे धीरे उससे खुलने लगा| एक बार मैंने टिफिन खोलकर पराठा बढ़ाया तो उसने पहले ना की ... फिर अपनी जेब में रख लिया ..बोला बाद में खायेगा ... फिर टूटा हाथ दिखाते हुये कहा कि यदि अभी खाया तो ‘खली’ दूसरा हाथ भी तोड़ देगा | खली कहता है कि मरियल या अपाहिज को ही भीख मिलती है | अगली दफे मैंने उसे ५ का सिक्का दिया | एक बार १० का सिक्का दिखाकर पूछा इसका क्या खरीदोगे ? “सफेदा”..उसने कहा “क्यों ?”

बारिश और भैरव (rain and bhairav )

सूक्ष्म कथा : बारिश और भैरव  __________________________ ______ आषाढ़ का भूला मानसून सावन में झमाझम लौट आया था | मौसम जरा खुला तो सावन महोत्सव की कड़ी में बिड़ला मंदिर चौराहे पर शानदार कवि सम्मेलन आयोजित किया गया |  कवि ‘चातक’ ने टेर भरी .. “बारिश आसमान की बहती आँख है  विरह विदग्ध धरती के हृदय से उठता धुँआ है | बारिश सृष्टि का मंगल गान है बार्रिश सूखे अधरो पर स्निग्ध मुस्कान है ||” अगले कवि ‘समर शेष’ दहाड़े .. “बारिश यानी मेघो का कुपित राग गर्जन है चपल तड़ित का तांडव नर्तन है ..| बारिश विप्लव का हरकारा है बारिश सर्व क्रान्ति की धारा है ||” अब कवि ‘पल्लव’ की बारी थी जिन्होंने तान भरी “ बारिश किसान की पथरायी आँखों का हरियाया सपना है , प्रकृति सुन्दरी की हरी भरी चूनर पर इन्द्रधनुष का गहना है ..|” शामियाने में वाह-वाह, आह-आह की चपर चपर के बीच काव्य सरिता अठखेलियाँ कर ही रही थी कि इस बीच मंदिर के सामने बैठे भिखारियों में से एक अपने लूँगड़े को उठाकर सीधे शामियाने में घुसा और कोई कुछ समझ पाता कि मंच पर चढ़ बैठा | ‘अरे ये तो जन कवि भैरव है’भीड़ में से कोई चिल्लाया | भैरव पहले पागल घोषित हुये थे ,फिर ए

सशक्तिकरण दौड़ (empowerment of woman )

सूक्ष्म कथा : सशक्तिकरण दौड़  ************************** ***** सरकार ने महिला सशक्तिकरण दौड़ का आयोजन किया | जिसमे साहब को महिलाओं को सशक्त करने के लिए दौड़ने जाना था |तो आज उनकी "वे" को छ: बजे की जगह आज पांच बजे उठना पड़ा | साहब को दो की जगह उन्हें तीन 'बेड टी' देनी पड़ी तब कही जाकर वे दौड़ने लायक हुए |  जैसे ही दौड़कर वापस आये उनकी ‘वे’ उनके जूते ..ट्रेक शूट सहेजने और उनकी नहाने-खाने-जाने की तैयारी  के लिए दौड़ने लगीं | उधर पड़ोसी मैडम को भी अपने विभाग की ओर से दौड़ने जाना था तो आज उन्हें भी छ : की जगह आज पांच बजे उठना पड़ा | नाश्ता और बच्चोके टिफिन तैयार कर वे किसी तरह घर से निकलीं | अभी अभी दौड़कर उन्होंने भीतर कदम ही रखा था ..पति चार मुख से चिल्लाये . मोज़े कहाँहैं ..? घंटे भर से फ़ाइल नहीं मिल रही ...और रूमाल आज धोया क्यों नहीं ?... ये मोबाइल चार्ज क्यों नही है ...? और मैडम थीं कि फिर से दौड़ने लगीं ... सरकार का मानना है कि दौड़ से महिला सशक्तिकरण होता है |||  face book 27/8/ 2014

बारिश (rain )

बारिश: एक अललित निबंध  ************************** ***************** बारिश आती है तो और बच्चों की तरह हम भी बारिश में कपडे उतारकर पानी में छप्पा छाई करते है ...लेकिन दो चार बारिश में भीतर और बाहर का फर्क मिट जाता है ..जब पन्नी की तिरपाल छलनी हो जाती है और हमें लगता है हम चलनी के नीचे बैठे या सोयें है | फिर हफ़्तों हो जाते है एक ही गीली पेंट पहने पहने और कमर से लेकर जांघ तक खुजली से सब लाल हो जाता है  | बारिश का हमारे लिए मतलब है मच्छर मेढक और कीड़े की मेहमानी | अभी.. देखो ना मलेरिया में छोटू का शरीर कैसे तवा हो गया है? पिछले साल बारिश में बस्ती में पानी घुसा तो कीड़ा भी बहकर आ गया और बेचारी नन्नी ...| वैसे बारिश में बस्ती में दो चार का मरना कोई बात नहीं है | कभी दीवार फूलकर गिर जाती है तो कभी कोई बच्चा सड़क के किनारे के गड्डे में डूबकर मर जाता है जैसे इस बार दीपक की छोटी बहन .... मेरी कलाई में भी इस बार एक राखी कम बंधेगी | बारिश के शुरू में तो माई भी कहती है रे दउ किरपा है किरपा ... लेकिन कुछ दिन चढ़ते ही गरियाने लगती है .. ’नासपीटे बादल ..कही और क्यों नहीं जाते .?..हफ्ते भर से ठेला नहीं लग

मै बारिश ही हूँ ( i m rain )

सूक्ष्म कथा : मै बारिश ही हूँ ++++++++++++++++++++++++++ + बालकनी में हम तीन थे ..मै .. चार्ली और कालिदास और हाँ चौथा भी था लेकिन नहीं के बराबर ..यानी मेरी पत्नी ....जो गिलास -बर्फ-सोडा फिंगरचिप्स के साथ बालकनी और किचन के बीच दौड़ रही थी | बालकनी के बाहर बारिश थी जैसे वर्ड्स वर्थ ..लोंग्फेलो..विटमेन की कविताओं की एक काकटेल आसमान से बरस रही हो .... एक शीतल सरगम ... ध म रे नि सा..साSSSSSSS  गांधार  तक आते आते चार्ली सेंटी हो गया और बोला .. “ जानते हो मुझे बारिश का मौसम क्यों पसंद है .?.क्योंकि इसमें मै अपने आंसुओं को छुपा सकता हूँ |” “और मुझे इसलिए पसंद है क्योंकि मुझे लगता है कि मल्लिका के लिए मेरा हृदय अकेले नहीं रो रहा ...साथ में आसमान भी रो रहा है |” ..कालिदास ने पंचम लगाया और तुम्हे ??? दोनों मेरी ओर पलटे .. “ मुझे इसलिए पसंद है कि बारिश मुझे हँसने का एक बहाना देती है मुझे लगता है कि बारिश ने मेरे हिस्से का भी रो लिया है |” मैंने धैवत छेड़ा .. हम सब अपनी सरगम पूरी कर चुके थे कि नज़र कोने में रेलिंग पर टिकी पत्नी पर टिक गयी ..| तुम्हे बारिश क्यों पसंद है ? मैंने पूछा .. “ मै बारिश ही ह

सिल-बट्टा

कथा : सिल-बट्टा ... ++++++++++++++++++ दादी सास मरी तो उनका लकड़ी का सन्दूक पलंग के नीचे से बाहर निकाला गया | कभी पूरी हवेली उनकी तर्जनी पर नाचती थी | फिर वे एक कमरे तक सिमटती गयीं और फिर पलंग ही उनका संसार हो गया था | उन्होंने शरीर के जेवर उतारकर बहुओं में बाँट दिये थे | कभी बेटी-दामाद आते तो दादी पलंग के नीचे से सन्दूक निकालने को कहती और एक कपडे की गाँठ खोलकर नोट निकालती और आशीष देते हुए थमा देती  | उस गाँठ में वापस नोट कहाँ से आ जाते थे यह राज दादी सास के साथ ही .... दादी सास के संदूक को खोलकर नाती पोतों ने उसकी रहस्य भरी दुनिया में झाँका ..उनके कपड़े ..कपड़ों के नीचे कुछ देवी देवताओं की तस्वीर और उनके बीच एक बहुत पुराना लगभग गल चुका गमछा ... और सबसे नीचे .. सिल-बट्टा ...| सिल-बट्टा का निकलना था कि लगा दादी सास का भूत निकल आया हो | कहते है यह दादी सास की दादी सास के समय से था | नयी बहु आती तो इसकी पूजा करायी जाती | धोखे से पाँव लग जाता तो प्रणाम करने होते | दाल पीसनी हो या चटनी ...ये महाराज धों पोंछकर बिछाये जाते और फिर वैसे ही धो पोछकर दीवार के सहारे टिका दिये जाते | जब मिक्सी-ग्राइं

भेद ( apartheid)

सूक्ष्म कथा : भेद  +++++++++++++++++++++++++ यू एन ओ ने उन्हें मार्टिन लूथर किंग पर उनके शोध के लिए चुना था | और वे रंगभेद उन्मूलन की वर्ल्ड समिट में भाग लेने के लिए शिकागो जा रही थी | सूटकेस में उन्होंने सात दिनों में गोरा करने वाली क्रीम के साथ केसर और नारियल पानी के पूरे १० पाउच करीने से रखे | उनकी माँ ने कहा था कि इन आठ महीनों में जितना नारियल केसर खाओगी ..बेबी उतना ही गौरा चिठ्ठा होगा |  क ेसर युक्त नारियल पानी सिप करते हुए वे काउच पर पसर गयीं | अपने चार माह के पेट पर आहिस्ता आहिस्ता हाथ फेरते हुए उन्होंने सपना देखा कि .. गोरे चिट्टे बच्चे को हाथ में लेकर नर्स कह रही है .. ओह गाड थेंक्स ...अपने पापा पर जाने से बच गया ...बिलकुल अपनी माँ पर गया है ... जैसे दूध में केसर घोल दिया हो .." सपने के अंत में उन्होंने देखा कि गोरे पन की क्रीम के बड़े बड़े होर्डिंग लगे हैं जिनमे मार्टिन लूथर किंग उनकी बेबी को गोद में उठा कर कह रहे है ..."मेरा एक सपना है ,,,,आई हेव ए ड्रीम "...||| face book 30/8/2014 

वे तीन ( three solider)

सूक्ष्म कथा : वे तीन  ************************** ******* .... आज दोपहर फिर से बस्ती में भेड़िया घुस आया था |  उसके लौट जाने के बाद ,लहुलुहान लोगों की चीख पुकार के बीच वे तीनों दाखिल हुये |  पहला थाली पीटते हुए होशियार होशियार चिल्लाने लगा और झोले से किताबें निकालकर भेड़िये का इतिहास दोहराने लगा |  दूसरे ने कैमरे और लाईट के सामने भेड़िये के आने और जाने के रास्ते पर बहस शुरू कर दी | तीसरा दौड़कर एक छत पर जा चढ़ा और अपनी लकड़ी की तलवार भांजने लगा | “ लेकिन आप लोग तब कहाँ थे जब भेड़िया हमें शिकार बना रहा था ?” एक जख्मी ने झल्लाते हुए पूछा | “ दरअसल तब हम अपने कमरों में आगे की रणनीति बना रहे थे |” तीनो समवेत बोले | भीड़ के बीच छुपा भेड़िया अपने को सुरक्षित पाकर मंद मंद मुस्कुरा उठा |||||| on face book 6/8/2014 

सुसाइड ( suicide)

सूक्ष्म कथा : सुसाइड  ************************** लाश फंदे से झूलती हुई मिली थी | दायें से देखने पर मामला ख़ुदकुशी का लगता ...बायें से देखने पर हत्या का | अफसरों के माथे की गहरा रही शिकन के बीच ,लाश उतारकर जामा तलाशी ली गयी | लाश की ज़ेब से एक अनपोस्ट ख़त बरामद हुआ |  उसे पढ़ते ही बड़े अफसर की शिकन और गहरी हुई लेकिन उसे छुपाते हुये अपने जूनियर से उन्होंने कहा .. “... इस सुसाइड नोट के बाद अब केस साफ़ हैं ... आगे तफ्तीश जारी रखने का मतलब नहीं है ..” “लेकिन इसमें तो सुसाइड करने जैसा कुछ नहीं है ..” छोटे अफसर ने दबे स्वर में कहा | “ क्यों नहीं है ....?” बड़े अफसर में डांटा और ..ख़त को जोर जोर से पढने लगा .. ** मेरी बिटिया .. तुमने पवित्र किताब के हवाले से मेरे फैसले पर सवाल उठाया है .. तो मै नहीं मानता कि कोई भी किताब आसमान से धरती पर उतरी है ... सारी किताबे चाहे उनकी जिल्द के रंग कुछ भी हों वे इंसान द्वारा ही लिखी गयी हैं और इंसान को उन पर सवाल करने का हक है ... इंसान का विवेक की सही और गलत की इकलौती कसौटी है .... किताबे इंसान की मदद के लिए हैं और यदि वे मालिक बनने की कोशिश में हो तो उन्हें हिन्द

सम्मोहन (hypnotism)

सूक्ष्म कथा : सम्मोहन ************************** ******** मंच सजा हुआ था .. रूपसज्जाकारों ने 'महाराजाधिराज' को सजा संवार कर देवोपम बना दिया था | वे सीखी हुई भंगिमाओं के साथ हाथ नचा नचा कर पवित्र मन्त्र दोहराने लगे | लाईट और कैमरे की चमक दमक भव्य सम्मोहन रच रहे थे | जब वे जंगल में अमन और प्रेम के बारे में बोल रहे थे ... सामने बैठे एक मेमने को रुलाई छूट गयी ...जिसके परिवार को कुछ दिनों पहले ही 'महा राजाधिराज' के पालतू शिकारियों ने घेरकर मार डाला था | लेकिन मेमना जल्दी से अपने मुंह में रुमाल ठूसकर ताली बजाने लगा ...क्योंकि मंच के पीछे खड़े सियार उसे घूर रहे थे | फिर 'महाराजाधिराज' दया ..अहिंसा ..... पर जोर जोर से बोलने लगे ...जब वे बोल रहे थे तो उनके दांतों के फंसा नर्म लाल गोश्त का टुकड़ा दिखायी दे रहा था लेकिन लोग उसे देखकर भी अनदेखा कर रहे थे क्योंकि सामने मंच पर पीछे खड़े सियार उन्हें घूरे जा रहे थे | इधर भाषण के दौरान महाराजाधिराज ने बड़ा सा मुंह खोलकर जम्हाई ली कि एक चील तेज़ी से झपटी और दाँतो के बीच फँसा गोश्त का टुकड़ा ले उड़ी .. महाराजाधिराज ...मंच पर पीछे खड़े स

दु:स्वप्न ( night mere)

सूक्ष्म कथा : दु:स्वप्न  ++++++++++++++++++++++++ पसीने से लथपथ बेचैनी से करवट बदलते हुए ‘उसने’ देखा कि पुष्प वर्षा के बीच राजपथ पर बढ़ता हुआ सपेरा सबसे ऊँची प्राचीर पर जा चढ़ा और वहाँ से लोगों को सम्बोधित करते हुए बोला कि सारे साँप पिटारी में क़ैद हैं और नगर साँपों से मुक्त हो चुका है ..नगरवासी अब निडर होकर जी सकते हैं | ‘उसने’ सच बताना चाहा कि पिटारी में क़ैद साँप नकली हैं लेकिन उसने पाया कि उसकी  घिग्गी बंध चुकी थी और वो चाहते हुए भी कुछ भी बोल पाने में असमर्थ था | सपेरा प्राचीर से उतर कर अपने महल में लौट गया | आगे ‘उसने’ देखा कि दूसरे दिन नगर में गाजे बाजे के साथ साँपों की शोभायात्रा निकाली जा रही है ..जिसमे झंडे त्रिशूल तलवार चाकू चमचमा रहे थे और खतरनाक नारे उछाले जा रहे थे | भयावह दृश्य के बीच उसने देखा कि नगर के आसमान में एक विशाल साँप छाता जा रहा था जिसने मुँह में जैतून की पत्तियाँ दबा रखी थी लेकिन जो पूँछ से लगातार जहर उगल रहा था और उसका चेहरा सपेरे सा था | इस दुस्वप्न से वो चीख कर जागा और उसने किसी तरह बत्ती जलायी ..रात के २ बजे थे .. पानी पीकर उसने टीवी का रिमोट दबाया ... जहाँ

खाना-खिलाना ( bribe - dishonesty )

सूक्ष्म कथा : खाना-खिलाना  ************************** ************** “पहली बार देश को कर्रा नेता मिला है ...ना खाऊंगा ना खाने दूंगा .. अब देखियेगा अपना इंडिया बहुत जल्दी पटरी पर आ जायेगा ..” सहयात्रियों के सामने वे जोर जोर से बोले जा रहे थे कि उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि देर से टी.टी. ई उनसे टिकट माँग रहा था | अचकाचाकर उन्होंने टिकट और अपना परिचय पत्र दोनों आगे किया | “३१५ रूपये डिफ़रेंस भर दीजिये” टी टी ई ने रसीद बुक निकालते हुए कहा ...| “आपने आई कार्ड नहीं देखा ..शायद ...इधर आइये जरा आपको बताता हूँ ..” बोलते हुए वे टी टी ई को गेट की तरफ ले गए | लौटे तो हिसाब लगाया सिर्फ एक गांधी छाप चढ़ाना पडा यानी इस तरह से २१५ फिर भी नफे में रहे ..| उन्होंने जेब से हाजमोले की गोलियाँ निकाली और दो गोली मुँह में डालकर डिब्बी सहयात्री केसामने बढ़ा दी | “साहब देश बचाना है तो भ्रष्टाचार मिटाना होगा वर्ना इससे अच्छी तो गुलामी थी ..अब किसी ना किसी को तो .....”.... खाने और खिलाने के बीच वे फिर से शुरू हो गये ..| वे और ट्रेन दोनों रफ़्तार पकड चुके थे |||| फेस बुक २१/ ८/ २०१४ 

deal ( सौदा )

सूक्ष्म कथा : डील  _________________________ डायनिंग टेबल पर सन्नाटा पसरा हुआ था |  उनकी आँखों की चील ने एक गोल चक्कर काटा और वे गुर्र्राये ... “ यदि तुमने खानदान की इज्ज़त के खिलाफ उस बदजात से शादी की तो तुम्हे इस घर से एक फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी ..” “तो फिर मै भी उसे नहीं छोड़ सकता ..” वो घायल कबूतर की तरह रिरियाया | “इन्होने उसे छोड़ने कब कहा , ये तो खानदान के हिसाब से खानदानी बहू लाने को कह रहे है ...” माँ की बिल्लौरी आँखे मुस्कुरायीं और उन्होंने बेटे को कमरे के भीतर चलने का इशारा किया | कुछ देर समझने समझाने के बाद माथे पर छलछला आये पसीने को पोछते हुए लड़के ने लड़की को फोन पर अपनी परेशानी बतायी और एक डील रखी | जिसके जवाब में दूसरी ओर से तराजू के संतुलित पलड़े की तरह सीधी और ठहरी हुई आवाज आयी .. “ डार्लिंग ... मुझे भी तुम्हारे खानदान की बहू बनने में कोई दिलचस्पी नहीं है हाँ 'लिव इन रिलेशनशिप' तभी रहेगी जब तुम बायपास वाला बंगला नहीं ग्रीनवेली वाला फार्महाउस अपने डैडी से मेरे नाम करवा दोगे .....दैट्स फायनल |” बेटे से माँ ,माँ से बाप तक डील पहुंची तो सन्नाटा खुसरफुसर में बदल गया ... अ

progress (तरक्की )

तरक्की  +++++++++++++++++++++ बात उन दिनों की है जब इंसान चाँद पर बस्ती बना चुका था और लम्बी सुरंग में विस्फोट कर उसने सृष्टि के जन्म की गुत्थी सुलझा ली थी | यहाँ तक कि अब वह अपनी कोख में वापस लौटकर अपनी नाक आँख त्वचा का रंग फिर से डिजाइन कर सकता था | उसने अपने जानदार पुतले बना लिये और इस तरह वो अमर हो गया था | उन दिनों ही चमचमाती सड़कों पर एक लड़का और एक लड़की घसीटते हुए लाये गए ...उन्हो ंने अपने कंधो पर अपने अपने जन्म से मिले सलीब उठा रखे थे ... भीड़ ने नारों के बीच हुकुम दिया कि दोनों को अपने अपने सलीब की जगह उनके बनाये सलीब उठाने होंगे ... दोनों कुछ बुदबुदाये | कोई कुछ समझ पाता की भीड़ शोर के साथ उन्हें संगसार करने लगी. आसमान में उड़ते परिंदे ने देखा और सोचा .. “अच्छा हुआ हम इंसान ना हुए ...” बगल से गुजरते हुए कुत्ते ने देखा और सोचा .. “अच्छा हुआ इंसान के साथ रहते हुए मुझे यह छूत अब तक नहीं लगी वर्ना ....” सभ्य बनाने के लिए लाये गये एक नंगे वनवासी ने देखा तो यह सोच कर काँप गया कि सभ्य होने के लिए क्या उसे भी यह सब करना होगा ? शैतान ने देखा तो यह सोचकर आसमान को थर्रा देने वाला अट्टहास कि

undo

सूक्ष्म कथा : undo  ++++++++++++++++++++++ अगले सब्जेक्ट को अन्दर बुलाने के पहले मैंने उसकी केस हिस्ट्री पर नज़र डाली | परिवार मित्र शिक्षक सबसे कटा हुआ ..हमेशा गुमसुम सामाजिक क्रिया प्रतिक्रिया से दूर | उसे इस आधार पर मंद बुद्धि मान लिया गया था कि वो कम्प्यूटर पर दिन रात शतरंज खेलने के बाद भी पहला लेवल पार नहीं कर सका था | हैरानी की बात थे कि जिस दिन से उसने पहला गेम चालू किया था वही आज तक च ालू था .. अनिर्णीत | वो अन्दर आया और अपने चश्मे के भीतर से मुझे ऐसे झाँका जैसे मै काउंसलर नहीं शतरंज की उल्टी हुई बिसात था | “ क्या हम शतरंज खेल सकते है ?” मैंने उसे सहज करने के लिये पूछा | जवाब में उसने कहा कि वो केवल कम्प्यूटर के साथ खेलना पसंद करता है क्योंकि उसमे undo करके वो अपनी गलती सुधार सकता है लेकिन लोग तो सिर्फ जीतने के लिए खेलते है ..वे उसे कभी undo नहीं करने देते .. | “ लेकिन तुम एक ही गेम पिछले कई सालों से क्यों खेल रहे हो ... तुम उसे खतम कर सकते हो |” अब मैंने स्वयम को सहज करते हुए पूछा “मगर मै तो खेलने के लिए खेलता हूँ ...इसलिए जिस तरह कम्प्यूटर मेरी गलती माफ़ कर देता है ..मै भी कम्

नशा ( drug)

सूक्ष्म कथा : नशा  *********************** छ्द्म्मा ने आज जबरन राजू को नहला दिया था और वो जब तक चूल्हे के आगे दांत किटकिटाकर गर्म होता, छ्द्म्मा ने डालडे में गरम गरम पूड़ियाँ छानी और उसकी बाँह खीचते हुए मंदिर की तरफ चल दी | मंदिर के आगे बैठे भिखारियों को राजू के हाथ से पूड़ी परोसवाने लगी तो भिखारियों ने पहले पूड़ी को फिर राजू के कपड़ो को और फिर छ्द्म्मा की साड़ी को देखा और फिर अपने कटोरे पर उचटी निगाह डालकर सामने सड़क की ओर देखने लगे ... जब कोई कुछ नहीं बोला तो छ्द्म्मा ही बोल उठी  “आज लड़के का जन्म दिन है .... भगवान से मनाओ कि बड़ा आदमी बने” .. .. सिर्फ एक बुढ़िया ने जवाब में एक हाथ उठाया और एक कुबड़े ने अधमरी आवाज में ‘जय हो’ कहा ... लेकिन उसकी अधमरी आवाज ने छ्द्म्मा को मानो ख़ुशी से फुला दिया और वो राजू को लगभग घसीटते हुए अन्दर जाने वाली लाईन में लग गयी | राजू से हाथ जुड़वाने में ज़रा देर क्या लगी कि पुजारी जोर से चिल्ला उठा "इतना ही समय लगाना है तो अपने लिए अलग से मंदिर बना लो " ..सुनना था कि छ्द्म्मा हड़बड़ी में जो मांगने आयी थी भूल बैठी और लपककर बाहर भागी ... बाहर निकली तो देखा कि बड़

blood donation (रक्त दान )

सूक्ष्म कथा : रक्त दान  ++++++++++++++++++++++++++ ठाकुर साहब ने आई सी यू में आँख खोली तो सामने ठकुराइन टिमटिमायी | बगल में खड़े तीनो सपूत झिलमिलाये | ठाकुर साहब ने आँखे वापस बंद की और फ्लेश बेक शुरू हो गया | तालाब किनारे की चरनोई जमीन से बंशी कोल को बेदखल करने के लिए उनके लठैत हवा में लट्ठ लहरा रहे हैं कि एक लट्ठ बंशी के कपार में बजा और ख़ून का फव्वारा फूट पड़ा | उधर कोहराम मचा और इधर फौजदारी से बचने के लिए ठाकुर साहब उलटे पाँव भागे | रात छिपकर ससुराल जाते हुए अंधे कुएं में जा गिरे ..और फिर इसके आगे एकदम अँधेरा | ठकुराइन ने तलवे सहलाये तो दुबारा आँख खोली | “ भगवान् की किरपा रही ...बाल्टी भर खून बह गया फिर भी सुहाग सलामत है ...समय पर खून मिल गया ... ..नहीं तो हम आज बिना सिन्दूर के हो गए होते ..” ठकुराइन पल्ला मुँह में डालकर सुबुक रही थी | “खून ... किसने दिया ..?” ठाकुर साहब ने आँखों में चमक भरकर बगल खड़े सपूतों को देखा | “ बंशी के लड़के सुरिज ने ... बंशी को खून की जरूरत रही .. इधर सुरिज खून दिया ..उधर बंशी चल बसा ...| वही खून तुम्हें लग गया ... तुम्हारे तीनो सपूत तो खबर मिलने पर सुबह आये ह

मुड़हा और प्रधानमंत्री की क्लास ( modi mantra )

सूक्ष्म कथा : मुड़हा और क्लास  +++++++++++++++++++++++++++++++ नाम सोहन था लेकिन लोग मुड़हा कहकर बुलाते |  सर में खुजली रहने से हर दो महीने में अपना सर जो मुड़वा लेता |  मुड़हा उस दिन ख़ुशी से फूलकर फटते फटते बचा था जब उसे मालूम चला कि एक चाय पिलाने वाला प्रधानमंत्री हो गया | उस दिन से चाय के गिलास लाते ले जाते समय उसकी छाती तनिक तनी रहती | उसका होटल ‘ब्लू मून’ स्कूल से लगा था | जब वहां बच्चों को आते जाते देखता तो मन तो उसका भी होता कि गिलास और केतली को फेंके और बस्ता लेकर द ौड़ लगा दे ..लेकिन अगले पल ही मन मार लेता कि बाप का रिक्शा इतना मंहगा सपना नहीं ढो सकता | उसे किसी ने नहीं बताया कि आठवी तक मुफ्त शिक्षा उसका मूल अधिकार है और उससे इस उम्र में काम लेना अपराध | लेकिन मुड़हा को पैदा करके जैसे उसका बाप भूल गया वैसे ही सरकार भी कानून को बनाकर भूल गयी | आज सुबह होटल में स्कूल के नौकर जब चाय पीने आये तो उनकी बात से मुड़हा ने जाना कि आज प्रधानमंत्री बच्चों की बड़े पर्दे पर क्लास लेंगे वो भी ग्राउंड में | और तभी से मुड़हा का मन भी मचल उठा .. ‘आखिर वे भी कभी चाय पिलाते थे मै भी चाय पिलाता हूँ ..|’ म