सूक्ष्म कथा : पैथालोजिकल पोस्टमार्टम ( ‘कफ़न’ को याद करते हुये ) ************************** ************** “हम लोगों आखिर हार गये थे | दो हफ्तों से , बेड नबर १७ के मरीज को हमारे डीन पैथालोजिकल अध्ययन के रूप खुद देख रहे थे | सारी दवाइयां उस बच्ची के सिकुड़े लीवर को आकार में नहीं ला सकी थी | जब हमने उसे मरा घोषित किया तो उसके साथ आयी उसकी माँ और नानी के चेहरों पर दुःख और राहत एक साथ दिखी | वे उड़िय ा लेबर थे जो शहर के ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए ठेके पर लाये गये थे | शायद अब वे अपनी रोज़ी पर वापस लौट सकती थीं |वे हमारे देखते देखते बॉडी को लेकर बाहर निकल गये | लेकिन डीन को जैसे ही खबर हुई वे उबल पड़े कि बॉडी को जाने कैसे दिया ?उसको रोको उसका पैथालोजिकल पोस्टमार्टम केस को समझने के लिए जरूरी है | हमने उल्टे पाँव बॉडी के लिये दौड़ लगायी वे लोग मेन गेट के बाहर ही मिल गये | माँ तो कुछ नहीं बोली लेकिन नानी अड़ गयी कि ‘बेटी अपनी मौत मरी है ..उसे चीर फाड़ नहीं होने दूँगी.तुम लोग उसका गुर्दा कलेजी सब निकाल लोगो|’.. उसकी अड़ी पर देखते देखते मजमा जमा हो गया और बॉडी को वापस पाना मुश्किल हो गया | अंत में अस्पताल क
कथ्य,शिल्पऔर अंतर्निहित सन्देश तीनों ही दृष्टि से अकिंचन ,जीवित फिर भी त्रणवत