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Showing posts from May, 2013

उपजा पूत कमाल

सूक्ष्म कथा : उपजा पूत कमाल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रो कबीर देश आज़ाद होने पर झुग्गी बस्तियों में जाकर ज्ञान की अलख जगाने लगे  | उनके पुत्र कमाल ने उन्हें समझाते हुए कहा … “ दद्दा  बस्ती बस्ती  मारे मारे फिरने से अच्छा है एक इंजीनियरिंग कॉलेज की परमीशन दिलवा दो सबका उद्धार हो जायेगा | ” ‘ बेटा देश को इंजीनियर नहीं नागरिकों की ज़रूरत है | ’ … ऐनक साफ़ करते हुए प्रो कबीर आगे  कुछ और कह पाते  कि कमाल तुनुक कर निकल गया | २० बरस बाद ,बाप के मरने पर लौटा तो पिता की विरासत का स्वयम्भू  दावेदार बन गया | आज रूलिंग पार्टी में शामिल होकर ‘ कबीर मेमोरियल ट्रस्ट ’ का चेयरमेन है जिसके अंतर्गत एक दर्जन इजीनियरिंग और मेनेजमेंट के कॉलेज संचालित  हैं | इनके  विज्ञापन में  प्रो कबीर की तस्वीर के साथ लिखा होता है … ‘ इसमें प्रवेश भविष्य के लिए  सुरक्षित निवेश है  ...विदेशी कम्पनी में प्लेसमेंट जॉब की गारंटी है ’ |||||

दो पाटन के बीच

सूक्ष्म कथा : दो पाटन के बीच ( पहला पाट :रात के दूसरे पहर ) जंगल के बीचोबीच बनी झोपड़ी के दरवाजे पर जोर की ठकठक हुई | भीतर बाड़े की मुर्गी फटफटा उठी | बुढ़िया ने आँख खोली तो देखा बुड्डा निढाल लेटा था | सो आप ही लुंगरा समेट कर उठी और बाहर आई | टार्च की तेज रौशनी चेहरे पर पड़ी तो आँख मिचमिचा गयी | “ वे लोग इधर दिखे हैं दो चार दिनों से... ” एक आवाज़ कड़की ‘ कोई नहीं दिखा सरकार  .... ’   टार्च की रौशनी ने अंदर चक्कर काटा और कोने में दुबकी मुर्गी ठहर गयी | “ वे लोग दिखे तो तुरंत खबर करना .... अच्छा इनाम मिलेगा .. ” दूसरी आवाज़ ज़रा मुलायम थी | ‘ हओ....पर सरकार  लडकी का  कुछ पता चला .. ’ बुढ़िया ने हिम्मत कर पूछा | “ ...अंतिम बार दादा लोगों के साथ दिखी थी ...मिलेगी तो बतायेंगे... ” और कंधे की बन्दूक को ठीक करते हुए.. जाती हुई आकृतियाँ मुर्गी की फडफडाहट के साथ अँधेरे में गायब हो गयीं ...|| (दूसरा पाट : रात का अंतिम पहर )                पश्चिम में शुकवा उग आया था | पर जंगल गहरी नींद में था | बुड्डे की नींद उचटी हुई थी | देखा तो बुढ़िया बगल में निढ

बाबा की कंठी

सूक्ष्म कथा : बाबा की कंठी   ****************************************************************************************************** नये साहब आये और आफिस क्या ..शहर में शोर मच गया कि ईमानदार साहब आया है | साहब ने मुझसे आते ही गंगाजल छिड़कवाया और ऐलान किया कि ‘बिना लिये’ हर फाइल निपटायी जायेगी | साहब ने अपने ऊपर बा बा की बड़ी सी फोटो टांगी |टेबल पर बाबा की बड़ी सी फोटो लगायी | क्लाइंट आता तो वे फाइल को बाबा के चरणों से छुआकर कहते ‘सब बाबा का आशीर्वाद है’ | साहब कोई ‘सेवा’ नहीं लेते लेकिन जब क्लाइंट चक्कर लगा कर थक जाता तो धीरे से सपरिवार बाबा के दर्शन की इच्छा जाहिर कर देते | परिवार में ६ लोग थे और साहब इतने सुकुमार थे कि फर्स्ट ए.सी. से नीचे का टिकट स्वीकार नही करते | महीने में चार से छ फेरा साहब का टारगेट था | यात्रा के पहले साहब बीमार घोषित हो जाते और जब मै टिकट केंसिल कराकर पूरे ९८०० सौ रूपये हाथ में धर देता तो स्वस्थ हो जाते | ‘किसी से कहना मत’ कहते हुये,साहब १०० रूपये ‘बाबा का प्रसाद’ कहकर लौटा देते | चपरासी रहते हुए कभी २० रूपये से ज्यादा का ‘प्रसाद’ नहीं मिला था | सो मैंने

आबरू

सूक्ष्म कथा : आबरू  ***************  बड़ी बिन्ना को देखने वाले आ रहे थे |  तारीख जैसे जैसे करीब आती जा रही थी , बाऊ जी का नाखून चबाना बढ़ता जा रहा था |  वे बैठक को देखते और उखड़ा पलस्तर , झांकती संध को पाकर ऐसा अनुभव करते मानो सरे राह उनकी  धोती खुल गयी है और कई जोड़ी आँखे उन्हें घूर रही हैं | बिन्ना की माँ ने जब कहा कि बैठक की मरम्मत करा लो तो उन्होंने हिसाब लगाया और पाया कि जी.पी.एफ. एडवांस दहेज के लिये ही नाकाफी है यानी मरम्मत असंभव थी | नाखून चबाते हुए उनकी नज़र सामने दीवार पर ठहर गयी जहाँ उनकी स्वर्गवासी माँ का माला पहना चित्र लगा था |पलस्तर वहाँ भी उखड़ा था लेकिन चित्र में छुप गया था | बाउजी के दिमाग में बिजली कौंधी| वे तेज़ी से उठे और बाज़ार से लौटे तो साथ में कई चित्र थे | उन्होंने हर उखड़ी जगह और संध पर करीने से चित्र सजा दिये |अब देखा तो उनकी बैठक सर्व देव मंदिर में बदल चुकी थी | लम्बी साँस छोड़ते हुए वे कृष्ण जी के चित्र के सामने आँख मूँदकर खड़े हो गये | उन्होंने अनुभव किया कि उनका चीरहरण हो रहा है लेकिन कृष्ण जी ने धोती का पूरा थान खोलकर उनकी आबरू बचा ली है ||||