सूक्ष्म कथायें..:: भ्रष्ट गाथा...
सरताज
घोटालों का
सरताज जमानत पर छूट कर बाहर आया |
चमचों ने उसकी
भव्य शोभा यात्रा निकाली |
उसके रथ के आगे
कूदकर एक गैंडे ने अपनी जान दे दी |
मरते वक्त उसने
सिर्फ इतना ही पूछा..
“ इसकी चमड़ी मेरी चमड़ी से मोटी कैसे ????”||||
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भ्रष्ट गाथा.
“ जो आदि मध्य और अंत है | कण कण में व्याप्त और अंनत
है |
जो बिगड़े काम बना देता है | ना हो तो टेढ़े आँगन में
नाच नचा देता है |
जो अजर और अमर है | शैतान और संत सब जिसके आराधक है | ऐसे
ब्रह्म का पर्यायवाची बताओ |”
शिक्षक ने पूछा....
एक क्षात्र उठा और उसने श्याम पटल पर लिखा ...
“भृष्टाचार”||||
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सुझाव
हवाई यात्रा की
शिकायत और सुझाव पुस्तिका में उन्होंने लिखा ...
भारतीय लोगों के लिए वेजीटेरियन और नान वेजीटेरियन के साथ
कृपया एक नया कालम और जोड़े ...ब्राइबटेरियन...
क्योंकि इस देश में कुछ लोग सिर्फ और सिर्फ घूँस खाते हैं
||||
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मन्नत
“हे देवा ...पिछले के पिछले साल सूखा पड़ा तो झुमकों की
जोड़ी आ गयी |
पिछले साल बाढ़ आयी तो ५ तोले का हार आ गया |
इस बार हीरों जड़ा कंगन लेना है ...हे देवा कैसे भी करके
भूकंप ला दो तुम्हे ५१ सौ का परसाद
चढ़ाउंगी |”
जनप्रतिनिधि की बीबी ने मन्नत मांगते हुए कहा .....
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खुलासा
जानवरों के एक संघठन ने सर्वे कराया और पाया कि
हिन्दुस्तानी सुअर कुपोषण का शिकार हैं और भुखमरी की कगार पर हैं |
सर्वे में अंत में इसके कारण का खुलासा किया गया ‘...
कि देश के नेता और अफसर उनका आहार खा जाते हैं ||
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जीवाश्म
४ हज़ार ईस्वी में वैज्ञानिकों को रेवा खंडे भारत वर्ष में एक विचित्र दैत्याकार खूंखार प्राणी का जीवाश्म मिला
...
इस प्राणी ने टोपी
...कुरता पाजामा पहन रखा था और कुर्सी से चिपका हुआ था ...
इस प्राणी के पेट में सड़क , पुल, नहर, भवन ....पचे अधपचे रूप में थे .... माना जा रहा है कि सर्व क्रांति जैसे किसी शीत युग
में यह प्रजाति लुप्त हो गयी ......
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पागल१
“पागल हमारी सभ्यता और समझदारी का विलोम रचते है”...
मोहन ने राकेश से क्षमा माँगते हुए डायरी में आगे लिखा ..
“ पागल क्या है ???
एक असफल समझदार
और समझदार क्या
है ??
एक सफल पागल ...”|||
( मोहन राकेश से
क्षमा याचना )
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पागल २
हमारे मुल्क
में जैसे जैसे संपन्नता बढ़ी पागलखाने भी
बढ़े....आज अमेरिका में १२ हज़ार पागलखाने हैं |”...कहते हुए उसने सिगार का कश
खींचा
“१२ हज़ार ..?? हमारे हिन्दुस्तान में तो १२ सौ भी नहीं होगे |”
“ ज़रूरत क्या है ? तुम्हारा मुल्क अपने आप में एक खुला पागलखाना है |”
उसने धुएँ के
छल्ले उड़ाते हुए तंज कसा |||
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पागल ३
वो बेतरतीब
,बदहवास .... दौडती भीड़ से अलग खड़ा
जोर जोर से किसी को फटकार रहा था |
“किस को डांट रहे हो ?”
“ईश्वर को”
“ईश्वर ...मगर यहाँ तो कोई ईश्वर नज़र नहीं आता |”
“कैसे नज़र आयेगा ....अभी पागल कहाँ हुए हो ?”
उसने कहा और
अपनी फटकार में मशरूफ हो गया||||
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