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Showing posts from December, 2016

लप्रेक :फल और मूर्ख

 फल +++++++++++++ सुनहरे फल को 'ही' ने चखा | सुनहरे फल को 'शी' ने भी चखा | चखने के बाद 'ही' का दिल आंसुओ में डूबने लगा | पश्चाताप से दग्ध वो खुद को दंडित करने के लिए जंगल की तरफ भाग गया | उधर चखने के बाद 'शी' का दिल सुनहरे प्रकाश से भर गया | वो बेसुध नाचने-गाने लगी और बस्ती की तरफ ख़ुशी से दौड़ पड़ी | "लेकिन एक ही फल का विपरीत असर क्यों हुआ ?" एक श्रोता ने पूछा | "क्योंकि सुनहरे फल को चखते समय 'ही' पाप में था और 'शी' प्रेम में " कथा वाचक ने व्याख्या की || बेबफाऔर मूर्ख   ++++++++++++++++ एक था he  और एक थी she मरियल सी पोखर में दोनों केली-कौतुक करते गगन-मगन थे |  बरस दर बरस बीत रहे | she मानो सोन मछरिया थी जिसके लिए he का प्रेम ही जीवन -जल था | उसके अभाव की कल्पना भी करते वो तड़पने लगती | तो उधर he मानो मेढक मक्कार था | उसके सपने में पोखर नहीं पहाड़ आते | जिनमे वो उचक-उचक कर खुद को चढ़ता हुआ देखता | एक दिन he को जैसे ही ज़मीन दिखी वो जल से बाहर कूदकर नौ-दो- ग्यारह हो रहा | she रूहांसी होकर पोखर में उछलकर चिल्लाई 

और मुन्ना चला गया

कथा : और मुन्ना चला गया ++++++++++++++++++ वे चार थे | सुखी थे या नहीं ?  कहा नही जा सकता | लेकिन इसके पहले बाप बात-बात पर भड़क नहीं उठता था ,मुन्नी हर वक्त रोते नही रहती थी और माँ बेसुध नहीं हुई थी | माँ-बाप सूरज के सफ़र पर निकलने के बहुत पहले अपनी खाली बोरियां पीठ पर धर कर निकल पड़ते | पीछे खोली में मुन्ना और मुन्नी बचते | उस समय दो साल का मुन्ना छ: साल की मुन्नी का हौसला होता था और मुन्नी उसकी माँ हो जाती थी | पन्नी बीनकर जब माँ-बाप लौटते तो माँ खाना बनाती और चारो साथ बैठकर खाते | इस बीच मुन्नी , मुन्ने की ढेर सी चुगली सुनाती और और हंसती रहती | उस दिन पन्नी बीनकर लौटते समय माँ-बाप ने चौराहे पर चर्चा सुनी कि सरकार की नोट बंदी के बाद लोग कचरे में पाँच सौ और हज़ार के नोट फेंक रहे हैं | "हमें तो एक भी नही मिला " 'हो सकता है पहले ही किसी और को मिल गया हो ' "कल से हम और जल्दी निकलेंगे ...और हाँ कल से मुन्नी भी काम पर साथ में निकलेगी क्या पता उसे ही कुछ मिल जाये " 'और मुन्ना ..?' "मुन्ने को तू गोद में अच्छे से ढाक कर रख लेना ..बस एक-दो दिन की ही तो

सांडे का तेल : saande ka tel

कथा : सांडे का तेल +++++++++++++++++ वो कर्रा मजमेबाज़ था | जिला आफिस के सामने ही  दस बजते उसकी डुग्गी बजती और देखते देखते बड़ा सा मजमा जम जाता | हरीराम ने बताया था वो मोड़ के कबाड़ी से शीशी लेकर उसमे जला इंजन आइल भर लेता था |  पहलवान बाबा की फोटो के आगे सजी उनकी कतार पर मानो पहलवान बाबा की कसरती देह आई एस आई का ठप्पा मार देती | मजमे का चक्कर मारते हुए वो कहता " भाई जान ..बाबू जी ..साहब जी ..  ये चमत्कारी जड़ी बूटी से बना सांडे का तेल बस  दिन में  दो बार ... नया पुराना कोई भी मर्ज़ हो तीन हफ्ते में छू मंतर हो जायेगा . ..खूंटा खम्भा हो जाएगा .रूप-रंग चंगा हो जाएगा ... एक बार आजमा कर देखो ..फायदा  नहीं तो आपकी जूती मेरा सर " दो तीन  चक्कर लगाकर वो बीस-बीस रूपये में लोगो को शीशी चेंपकर  देखते-देखते खुद छू मंतर हो जाता | मकुना पनवाड़ी उसके हर मजमे में भीड़ से निकलकर जोर से कहता 'मुझे दो शीशी दो  ..एक हफ्ते में इस तेल के इस्तेमाल के बाद  अब बीबी मायके जाने का नाम ही नहीं लेती |' हरिराम ने  बताता था कि मकुना को इसके लिए रोज़ बीस रूपये मिलते थे | मेरा सब कुछ ठीक-ठाक चल रह

ही और शी : तीन लप्रेक

he और she: दानिश और दीवानी  ++++++++++++++++++++++++ he दानिश था  उसने व्यथा को  क्लासिक पेंटिंग बना दिया . she दीवानी थी उसकी व्यथा ने उसे कार्टून बना दिया... he ने व्यथा को निवेश किया जिसकी वापसी पुरूस्कार में हुई she ने व्यथा सारी गुल्लक में जमा की जब गुल्लक फूटा वो तितली बनकर उड़ रही ....|| 'ही' और 'शी' :फल +++++++++++++++ सुनहरे फल को 'ही' ने चखा | सुनहरे फल को 'शी' ने भी चखा | चखने के बाद 'ही' का दिल आंसुओ में डूबने लगा | पश्चाताप से दग्ध वो खुद को दंडित करने के लिए जंगल की तरफ भाग गया | उधर चखने के बाद 'शी' का दिल सुनहरे प्रकाश से भर गया | वो बेसुध नाचने-गाने लगी और बस्ती की तरफ ख़ुशी से दौड़ पड़ी | "लेकिन एक ही फल का विपरीत असर क्यों हुआ ?" एक श्रोता ने पूछा | "क्योंकि सुनहरे फल को चखते समय 'ही' पाप में था और 'शी' प्रेम में " कथा वाचक ने व्याख्या की || he और she :विलोम __________________________________ एक था he और एक थी she मरियल सी पोखर में दोनों केली-कौतुक करते गगन-मगन थे |  बरस