फल +++++++++++++ सुनहरे फल को 'ही' ने चखा | सुनहरे फल को 'शी' ने भी चखा | चखने के बाद 'ही' का दिल आंसुओ में डूबने लगा | पश्चाताप से दग्ध वो खुद को दंडित करने के लिए जंगल की तरफ भाग गया | उधर चखने के बाद 'शी' का दिल सुनहरे प्रकाश से भर गया | वो बेसुध नाचने-गाने लगी और बस्ती की तरफ ख़ुशी से दौड़ पड़ी | "लेकिन एक ही फल का विपरीत असर क्यों हुआ ?" एक श्रोता ने पूछा | "क्योंकि सुनहरे फल को चखते समय 'ही' पाप में था और 'शी' प्रेम में " कथा वाचक ने व्याख्या की || बेबफाऔर मूर्ख ++++++++++++++++ एक था he और एक थी she मरियल सी पोखर में दोनों केली-कौतुक करते गगन-मगन थे | बरस दर बरस बीत रहे | she मानो सोन मछरिया थी जिसके लिए he का प्रेम ही जीवन -जल था | उसके अभाव की कल्पना भी करते वो तड़पने लगती | तो उधर he मानो मेढक मक्कार था | उसके सपने में पोखर नहीं पहाड़ आते | जिनमे वो उचक-उचक कर खुद को चढ़ता हुआ देखता | एक दिन he को जैसे ही ज़मीन दिखी वो जल से बाहर कूदकर नौ-दो- ग्यारह हो रहा | she रूहांसी होकर पोखर में उछलकर चिल्लाई
कथ्य,शिल्पऔर अंतर्निहित सन्देश तीनों ही दृष्टि से अकिंचन ,जीवित फिर भी त्रणवत