सूक्ष्म कथा : प्रलाप
‘क्योंकि मैं नहीं चाहता कि आगंतुक ये जाने कि मैं अंधा हूँ |’
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‘मनमोहन या मोदी ?’
‘मोदी’ ..
‘क्यों?’
‘क्योंकि मुझे लाल रंग पसंद है
पहले के मुँह पर कालिख पुती है ,दूसरे के मुँह पर खून |||’
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‘तुम बड़े होकर क्या बनोगे ?’
‘मै बड़ा नहीं होना चाहता |’
‘क्यों?’
‘क्योंकि बड़े होने पर कुछ न कुछ बनाना पड़ता है , मैं बस मैं रहना चाहता हूँ |||’
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‘हम कितने समय से चल रहे हैं, हम कब पहुँचेगें?’
मैंने पूछा ..
‘कहीं नहीं पहुँचेगें’ ...
‘क्यों?’
‘क्योंकि हम गोल घेरे में घूम रहे हैं |’
उसने कहा ..
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‘तुम क्यों मरे ?’
होनहार नौजवान की अकाल मृत्यु पर ईश्वर ने पुछा
‘क्योंकि मेरे शब्दकोष से “ना” शब्द गायब हो गया था |||’
होनहार ने कहा ....
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‘गुरुदेव दक्षिणा में क्या दूँ ?’
‘जूते’
‘मगर द्रोणाचार्य ने तो एकलव्य से दाहिने हाथ का अंगूठा माँगा था |’
‘उससे तीरों का भय था तुमसे जूतों का भय है |’...
.द्रोणाचार्य ने कहा ..
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‘क्रांति चलकर हम तक अभी क्यों नहीं पहुँची?’
उदय ने पूछा
‘बहस , चिंतन मनन करने से क्रांति का सिर बहुत बड़ा हो गया है|
उसकी टाँगे इतने बड़े सिर का बोझ नहीं उठा सकती
वो घिसटते हुए आ रही है लेकिन हम तक आते आते घिस कर चवन्नी हो जायेगी |’
प्रकाश ने समझाया .....
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घर फूंक सको तो हमारे साथ चलो...
कबीर ने कहा ....
पहले घर तो बना लूं ...
कमाल ने कहा.....
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तुम
बहस में भौकने क्यों लगते हो?
मैंने पूछा...
तुम पत्थर क्यों मारते हो ?
उसने कहा ...|
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तुममे ,
मैंने पूछा...
जिस दिन तुम सच सहने की हिम्मत जुटा लोगे ...
उसने कहा ...
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तुम कविता क्यों नहीं लिखते ?
मैंने पूछा.....
मेरे सच को किसी लिबास की ज़रूरत नहीं है
उसने कहा .....
उसकी लाश
दलदल में धंसी मिली
वो बहुत उम्दा तैराक था
उसने बड़े बड़े समंदर पार किये थे
वो भूल गया था
कि दलदल को तैरकर नहीं ;
दलदल से दूर रहकर ही पार किया जा सकता है |
वो था इसलिए कि
वो सोचता था ....
मै सोचता हूँ ;
कि मैं सोचता क्यों हूँ ?....
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