Skip to main content

कुछ कथा कुछ प्रलाप भाग १


सूक्ष्म कथा : प्रलाप


तुमने अपनी बैठक में इतने आईने क्यों लगा रखे हैं ?

क्योंकि मैं नहीं चाहता कि आगंतुक ये जाने कि मैं अंधा हूँ |
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
मनमोहन या मोदी ?
मोदी ..
क्यों?
क्योंकि मुझे लाल रंग पसंद है
पहले के मुँह पर कालिख पुती है ,दूसरे के मुँह पर खून |||
@@@@@@@

तुम बड़े होकर क्या बनोगे ?

मै बड़ा नहीं होना चाहता |
क्यों?
क्योंकि बड़े होने पर कुछ न कुछ बनाना पड़ता है , मैं बस मैं रहना चाहता हूँ |||

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
हम कितने समय से चल रहे हैं, हम कब पहुँचेगें?
मैंने पूछा ..
कहीं नहीं पहुँचेगें ...
क्यों?
क्योंकि हम गोल घेरे में घूम रहे हैं |
उसने कहा ..
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
तुम क्यों मरे ?
होनहार नौजवान की अकाल मृत्यु पर ईश्वर ने पुछा
क्योंकि मेरे शब्दकोष से ना शब्द गायब हो गया था |||
होनहार ने कहा ....
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

गुरुदेव दक्षिणा में क्या दूँ ?

जूते
मगर द्रोणाचार्य ने तो एकलव्य से दाहिने हाथ का अंगूठा माँगा था |
उससे  तीरों का भय था  तुमसे जूतों का भय है |...
.द्रोणाचार्य ने कहा ..
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

क्रांति चलकर हम तक अभी क्यों नहीं पहुँची?
उदय ने पूछा
बहस , चिंतन  मनन करने से क्रांति का सिर बहुत बड़ा हो गया है|
उसकी टाँगे इतने बड़े सिर का बोझ नहीं उठा सकती
वो घिसटते हुए आ रही है लेकिन हम तक आते आते घिस कर चवन्नी हो जायेगी |
प्रकाश ने समझाया .....
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@


तुम
घर फूंक सको तो हमारे साथ चलो...
कबीर  ने कहा ....
पहले घर तो बना लूं ...
कमाल ने कहा.....
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

@@@@@

 

 तुम                                                             
बहस में भौकने क्यों लगते हो?
मैंने पूछा...
तुम पत्थर क्यों मारते हो ?
उसने कहा    ...|
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
तुममे ,
सच कहने की हिम्मत कब आएगी ?
 मैंने पूछा... 
जिस दिन तुम सच सहने की हिम्मत जुटा लोगे ...
उसने कहा ...
@@@@@@@@@@@@@@@ 
@@@@@
तुम कविता क्यों नहीं लिखते ?
मैंने पूछा.....
मेरे सच को किसी लिबास की ज़रूरत नहीं है
उसने कहा .....


@@@@@@@@@@@@@@@@  
उसकी लाश
दलदल में धंसी मिली                             
वो बहुत उम्दा तैराक था
उसने बड़े बड़े समंदर पार किये थे
वो भूल गया था
कि दलदल को तैरकर नहीं ;
दलदल से दूर रहकर ही पार किया जा सकता है |
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ 
वो था इसलिए कि
वो सोचता था ....
मै सोचता हूँ ;
कि मैं सोचता क्यों हूँ ?....
                       

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

हवा ने घुंघरू पहन लिए थे
ख़ामोशी सितार हो गयी थी
जब आँखे जुबाँ हो गयी थीं                                    
और वो निगाह से गा रही थी ....

Comments

Popular posts from this blog

सूक्ष्म कथा : हिसाब  (हमने अपनी क्रूरताओं को खूबसूरत लिबास पहना रखा है ) ************************** ************** काली कुरती वाले ने पीली कुरती वाले को रोका और दो लात लगाकर चीखा.. “ तुम्हारे बाप ने मेरे बाप को गाली दी थी ...आज हिसाब सूद समेत बराबर |” (एक और पीढ़ी बाद......) पीली कुरती वाला घुड़सवार , काली कुरती वाले को बर्छी घोंप कर नाचने लगा ... “ तुम्हारे बाप ने मेरे बाप को मारा था.. ...आज हिसाब सूद समेत बराबर |” (कुछ और पीढ़ियों बाद ..) नारे लगाते हुआ हुजूम ...बस्ती में घुसा | औरतों के साथ बलात्कार किये ...बच्चो को संगीनो पर उछाला... और अट्टहास कर बोला “...आज हिसाब सूद समेत बराबर |” ये देख...बूढ़ा आसमान छाती पीटकर विलाप करने लगा .. “ हाय हाय ..ये कौन सा हिसाब है जो मासूमो ,मजबूरों और बेकसूरों की कीमत पर बराबर किया जा रहा ..|” बूढ़े आसमान का विलाप अब भी अनसुना है ||| ( चित्र साभार गूगल)

चन्द्रलोक से चच्चा

चन्द्रलोक से चच्चा ************************************************************************************************** चच्चा भोपाली इन दिनों चंद्रलोक की सैर पर हैं | जैसे ही सर्वर जुड़ा इधर लोगो ने कैमरे के सामने थोबड़ा रखते हुये एक साथ सवाल दागा “ चच्चा चन्द्र लोक में क्या देखा ? ” चच्चा ने  पान के गिलौरी मुँह में दाबी और पीक मारकर बोले .. “ खां देखने के लिए कुछ है  ही नहीं ..बस पहाड़ सा एक जानवर यहाँ भी है  हाथी जैसा ... लेकिन चन्द्रलोक वाले उसे क़ानून कहकर बुलाते हैं ...खां वो खाता बहुत है पर चलता धीरे धीरे है | कभी पगला भी जाता है | जिसके पास अंकुश होता है वो ही उसे काबू में कर सकता है | मगर   खां सबसे बड़ी बात तो ये कि हाथी की तरह उसके भी खाने के दांत अलग और दिखाने के दांत  अलग अलग हैं | यहाँ के लोग खाने के दांत को माशाराम और दिखाने के दांत को तमाशाराम कहते  हैं |" कहकर चच्चा ने दूसरी गिलौरी भी दाब ली मगर वे आगे कुछ और बता पाते कि सर्वर डाउन हो गया || (चित्र गूगल साभार )

कथा :राखी और कवच

कथा : राखी +++++++++++++++++ आज के दिन जब दीदी की कलाई पर राखी बांधता हूँ और उससे रक्षा का वचन लेता हूँ तो लोग कहते हैं कि मै गलत परम्परा डाल रहा हूँ..| मै कहता हूँ नही ..बस परम्परा को सही कर रहा हूँ | मेरी बात समझने के लिए आपको मेरे बचपन में जाना होगा | हम पांच थे .. माँ ,बाबू, दीदी मैं और सिम्मो | कस्बे में घर के बाहरी कमरे में ही हमारी प्रेस की दूकान थी .. माँ पड़ोस से कपड़े लाती और बाबू मुंह में बीड़ी दबाये कपड़ो पर कोयले वाला प्रेस फेरते | बीड़ी की लत ने बाबू को जवानी में ही इतना बेदम कर दिया कि अब वे सिर्फ प्रेस में कोयला भर पाते और प्रेस फेरने का काम दीदी के जिम्मे आ गया | दीदी दिन भर काली चाय पीती और प्रेस करती | हाँ मुझसे और सिम्मो से जरुर कहती दूध पीया करो ..कमज़ोर दिखते हो | मेरे कालेज पहुँचते पहुँचते जब बाबू सिर्फ दवा के भरोसे रह गये तब दीदी ने बाबू की जगह ले ली | दीदी अब प्रेस के साथ हमारी पढ़ाई लिखाई के बारे में भी पूछती | जबरिया जेब में नोट डालकर सर पर हाथ फेरते हुए कहती चिंता मत कर खूब पढ़ | मेरा कालेज खत्म भी नहीं हुआ था.. कि सिम्मो कस्बे के ऑटो वाले के साथ भाग गयी | मैने अपन