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Showing posts from November, 2012

guru

सूक्ष्म कथा : चैनल गुरु .......... हमारे दौर में मीडिया घास को गन्ना बना देता है किन्तु  गन्ने को घास भी  नहीं डालता | ....सो मैं भी  चैनल पर गुरु के ज्ञान और फंडों की झोंक में आकर उनका प्रशंसक बन गया | (चूँकि मैं स्वयम्भू क्रांतिकारी था इसलिए स्वयं को  भक्त नहीं कह सकता ) ....चैनल गुरु के समागम में ,मैं भी उनके स्पर्श की लालसा साथ पहुँचा और उनके गले लगना चाहा | मगर हताश होना पड़ा क्योंकि उनकी तोंद जो उनके नेटवर्क की तरह ही विशाल थी आड़े आ गयी | ....मैंने चाहा कि गुरु के हाथ ही चूम लूँ लेकिन उसमे भी मायूस हुआ क्योंकि गुरु ने संक्रमण के डर से दस्ताने चढ़ा रखे थे | .... हारकर मैं तब चरण रज लेने के लिए चरणों में झुका और चरण देखते ही  गश खाकर मंच पर धराशायी हो गया | ......मैंने देखा इतना बड़ा गुरु जिसके पीछे लोग पागलों की तरह दौड़ रहे थे ...स्वयं बैशाखी पर टिका था||||||| (चित्र : ज्ब्य्नैक मिकेस)

laxmi

सूक्ष्म कथा : लछमनिया -लछमी -लछमी बाई ..भइये..जब दाम आता है तो आदमी बदले या ना बदले नाम ज़रूर बदल जाता है | अब गाँव की नाउन को ही लो | जब तक हमारी बहू ,बेटियों की तेल मालिश कर फटे में गुजर बसर कर रही थी , तब तक हम लोगों  की लछमनिया थी | जब सेठ की छोटी मलकिन की जचकी बाद इसे  मालिश के बदले २ गिन्नी सोने की मिली और इसने घर पक्का करा लिया तो लछमनिया से गाँव की लछमी हो गयी | फिर जब ज़मीदार को लकवा हुआ और ज़मीदार ने दिलखुश सेवा के बदले १४ बीघे  का खेत इसके नाम कर दिया तो लछमी से कई गाँवों की  लछमी बाई हो गयी | ........कन्वे काका ने चुटिया में गाँठ मारते हुए ठहाका मारा  और चिलम थाम ली  | ( चित्र: आई. आर . हेरी )

crime and game

सूक्ष्म कथा : खेल और जुर्म ************************ ( वो खेलें तो खेल ....  हम खेलें तो जुर्म ..जुआ ..सज़ा कैदे बामुश्क्कत ) ______________________________________________   .... 15/11/12..अखबार ‘ दस्तक ’ की बॉक्स न्यूज इस तरह थी ... ............ “ दीपावली से जुड़ी सामाजिक बुराई के उन्मूलन के लिए साहेब बहादुर  के निर्देशन में रिक्शा स्टेंड , धर्मशाला और फुटपाथिया होटल में छापामार कार्यवाही करते हुए ७४० जुआरी पकड़े और फड़ से ५६ हज़ार रूपये ज़ब्त कर सरकारी खजाने में ज़मा किये गये| ” ......दीपावली की अगली भोर सुबह की सैर के दौरान जो मैंने देखा था उसे मैंने बाक्स न्यूज बनाना चाहा ...  मैंने देखा था कि ऑफिसर क्लब के अंदर  से ४ तुर्रा धारी ,लड़खड़ाते साहेब बहादुर  को सहारा देकर लाये और उन्हें फोर्ड गाड़ी में डाल  दिया | .....दरबान ने बताया कि साहेब बहादुर  दोस्तों के साथ  रात भर लक्ष्मी जागते रहे और बोतल नचाते रहे ..हुज़ूर शुरू में तो जीते पर बाद में अंगूठी तक हार गये ...         इस न्यूज पर  संपादक ने लाल लाइन मार दी | ( चित्र : टेंगेंटोप्पा)

ganth( lock)

सूक्ष्म कथा : गाँठ बात इतनी सी थी कि कोई बात ही ना थी | तुम चाहती थी कि मै गोभी चिल्ली खाकर तुम्हे मोहब्बत का सबूत दूं | मै चाहता था कि तुम आलू दम बनाकर मुझे इज्ज़त दो | हम भूल गए थे कि रिश्ते में गलतफहमी जितनी तेज़ी से पनपती है , कैंसर की गाँठ भी उतनी तेज़ी से नहीं बढती | और फिर रिश्ते  में आज़माइश का वो खेल फिर शुरू हो गया , जिसे ना खेलने की कसम कई दफे हम खा चुके थे | बच्चे इस खेल के खत्म होने का इंतज़ार करते करते वक़्त से पहले बूढ़े हो गये | हम उनके आँसुओं को देख पाते तो शायद समझ पाते कि जो गाँठ हमने बड़े होकर लगायी थी उसे बच्चे बनकर ही खोला जा सकता था  |||||

achary ka ilaaz

सूक्ष्म कथा :आचार्य का इलाज़   ...आचार्य की सफलता का धूमकेतु जिस तेज़ी से उभरा , उसी तेज़ी से उनका बहरापन भी बढ़ता गया | लेकिन वो तब  भीषण और लाइलाज़ हो गया , जब बुद्धि विपरीत होने से वे अपने मित्र की श्रद्धांजलि सभा में जा पहुंचे | जैसे जैसे तालियाँ बढ़ती गयी , उनके कान सुन्न होते गये | सभी  लौकिक परलौकिक इलाज़ बेकार हो जाने पर आचार्य को बहरे पन से मुक्ति तब मिली , जब उनके चेलों ने एक चमचा समागम आयोजित किया और भाड़े की खूब तालियाँ पिटवायी..| ठीक होते ही आचार्य ने जो कहा उसका शिष्ट भाषा में अर्थ यह है कि सफलता दो बातों के प्रति असहिष्णु  होती पहली दूसरों के द्वारा छोड़ी हवा और दूसरी.. दूसरों की प्रसंशा...||||

kabrstan

.. सूक्ष्म कथा :कब्रस्तान ...वो  ३० साल बाद अपने बचपन के  शहर में था.. घर से स्कूल के रास्ते पर जहाँ उसने  घरौंदे बनाये थे, वहाँ मल्टी स्टोरी  इमारत उग आयी थी | जो टीला पहाड़ लगता था फ्लाई ओवर के नीचे दफ़न हो चुका था  | इमली का  पेड़ जिसके नीचे हाट लगती थी वहाँ  अब मॉल था | चलते चलते वो   कब्रस्तान के सामने  जा पहुँचा |वहाँ भी कच्ची कब्रें पक्की हो चुकी थीं और पक्की कब्रों पर संगमरमर जड़े जा चुके थे | तभी उसने  देखा कि कब्रिस्तान के पीछे जहाँ मरे जानवर फेंके जाते थे वहाँ एक बड़ी सी झुग्गी बस  गयी थी जिसके बजबजाते बदबूदार  गटर के किनारे नाक और लार बहाते बच्चे खेल रहे थे | उसने पाया कि बचपन से अब तक  ... शहर का  विकास तो खूब हुआ था लेकिन कब्रिस्तान के पास पहुँचकर दम तोड़ गया था | 

biography

सूक्ष्म कथा : सफल आदमी की जीवनी ( अकबर इलाहाबादी के एक शेर से प्रेरित ) उसने बचपन में टाफियाँ खायी और किशोर वय में ट्राफियाँ जीतकर घर लाया | जवानी में ८ से ८ की ८ अंकों वाली मल्टीनेशनल नौकरी बजायी |  फिर छुईमुई बार्बी डाल के संग हनीमून मनाया | २ चाकलेटी बच्चों को सेटेल किया | २ बार वोट डाला और हर बार टेक्स रिटर्न  भरते समय सरकार को कोसा | १७ दर्जन  विदाई और ९८ दर्जन विवाह समारोह में शामिल हुआ | मेट्रो में फ्लेट लिये| रिटायरमेंट पर बारी बारी से इस घर से उस घर दर बदर हुआ | और ओल्ड होम में कपाल भस्तिका करते हुए मर गया |  ....................................................................................

true story

सूक्ष्म कथा : शोभा की सत्यकथा  शोभा के बहुतेरे नामलेवा हैं   | ९ बजे  से शोभा की पुकार शुरू हो जाती है | ९ से १० हुआ तो भुनभुनाहट और नहीं आई तो शोभा नाम का हाहाकार | शोभा  अपार्टमेंट के ८  घरों का झाड़ू ,पोछा और बासन है | एक दिन उसके नाम का हाहाकार हुआ और शाम को खुलासा कि शोभा का लड़का नहीं रहा | २ दिन झाड़ू-पोछा , जूठे बर्तन और हम  शोभा की राह देखा किये | तीसरे दिन जी कड़ा कर कड़ा कदम उठाने जा ही रहे थे कि दरवाजे की घंटी बजी | “ अरे आज तीसरे ही दिन आ गयी ...लड़के की चौथ तो कर लेती | ” मैंने किसी तरह बनावटी सांत्वना में कहा | “ गरीब की क्या सौबर और क्या चौथ साहेब | बड़े लोग बड़ी बातें  | मैं तो उसकी जचकी में भी तीसरे  दिन  आ गयी थी और अब नासपीटे की मिटटी में भी  तीसरे दिन..लड़का तो  चला गया ...पर पीछे ५ पेट अभी भी जुड़े हैं....साहेब | ” आँचल से आँखों की कोर पोछते हुए शोभा फर्श पोछने लगी | उसने आगे कुछ नहीं कहा | लेकिन उसका अनकहा आज भी मेरे ज़ेहन में गूंजता है | “ जब पेट में आग लगती है तो रोग-शोक, नियम-धरम ..सब ##### # घुस जाते हैं..साहेब  | ” |||||

saheb salam

सूक्ष्म कथा : साहेब सलाम  साहेब सलाम शिकार के लिये जंगल गये और वहाँ से सुन्दर मैना पकड़ लाये | नाम रखा ‘ राधा ’ | राधा ने उड़ना चाहा तो पंख काट डाले | पंजे गड़े  तो नाखून उखाड़ डाले | चोच चुभी तो उसे घिस डाला | पर राधा को प्रेम और आजादी भरपूर दी | राधा बड़ी सी हवेली में दिन भर चक्कर काटती रहती | हवेली में साहेब सलाम का वफादार ‘ शेरा ’ भी था | एक दिन जायका बदलने के लिये शेरा ने राधा पर झपट्टा मार दिया | साहेब सलाम ने देखा तो..लपककर  दुनाली दाग दी | एक चीख के साथ शेरा उछलकर तड़पा और ठंडा हो गया | साहेब सलाम  भी सर पकड़कर बैठ गये | उन्हें वफादार शेरा के जाने का पछतावा तो बहुत था | पर उन्होंने सोचा कि सबल से निबल की रक्षा ही उनका धर्मं है | वे ‘ साहेब सलाम ’ जो ठहरे ||||