सूक्ष्म कथा : चैनल गुरु .......... हमारे दौर में मीडिया घास को गन्ना बना देता है किन्तु गन्ने को घास भी नहीं डालता | ....सो मैं भी चैनल पर गुरु के ज्ञान और फंडों की झोंक में आकर उनका प्रशंसक बन गया | (चूँकि मैं स्वयम्भू क्रांतिकारी था इसलिए स्वयं को भक्त नहीं कह सकता ) ....चैनल गुरु के समागम में ,मैं भी उनके स्पर्श की लालसा साथ पहुँचा और उनके गले लगना चाहा | मगर हताश होना पड़ा क्योंकि उनकी तोंद जो उनके नेटवर्क की तरह ही विशाल थी आड़े आ गयी | ....मैंने चाहा कि गुरु के हाथ ही चूम लूँ लेकिन उसमे भी मायूस हुआ क्योंकि गुरु ने संक्रमण के डर से दस्ताने चढ़ा रखे थे | .... हारकर मैं तब चरण रज लेने के लिए चरणों में झुका और चरण देखते ही गश खाकर मंच पर धराशायी हो गया | ......मैंने देखा इतना बड़ा गुरु जिसके पीछे लोग पागलों की तरह दौड़ रहे थे ...स्वयं बैशाखी पर टिका था||||||| (चित्र : ज्ब्य्नैक मिकेस)
कथ्य,शिल्पऔर अंतर्निहित सन्देश तीनों ही दृष्टि से अकिंचन ,जीवित फिर भी त्रणवत