गिरावट
टीवी खोला तो
बोला रुपिया नीचे गिर रहा है
पेपर खोला तो
बोला रुपिया नीचे गिर रहा है .
अपुन भी चादर
बिछाके बैठ गेला कि गिरे तो दो चार समेट
लें ..
सुबह से शाम हो
गेला रुपिया तो दूर साला चव्वनी तक नहीं गिरा ...
ये सब खाली पीली
बोम मारता है
सच्ची बोलता कि
रुपिया गिरे ना गिरे देश लगातार गिर रहा है
और जब देश गिर
रहा हो तो रुपिया गिरे कि उठे क्या फर्क पड़ता है ?? \\//||
कवि की मितली
कल्पना करता हूँ ...वो कौन सा वतन होगा जहाँ के कवि को चन्द्रमा..
चिड़िया ...फूल ..तितली ...सुन्दरता ...प्रेम
पर कविता करने की फुर्सत या हिम्मत होती होगी ...
इधर तो कोई चाँद सितारों की बात करे तो उसके ‘परलोकवासी’ होने शंका
होने लगती है ..
वो कैसा समय रहा होगा कि कवि को विषय का संकट हुआ करता था और वो
नायिका भेद करने बैठ जाता था ...यहाँ तो विषयों के बीच चुनाव का संकट है ....किसे
ले किसे छोड़े ..सब बराबर ज़रूरी है और बराबर छाती पर सवार है |
सुबह दुर्गा शक्ति पर लिखना सोचा ही था कि राहुल बाबा के गरीबी के
दर्शन ने कलम पकड़ ली ...लिखना पूरा भी नहीं कर पाया कि था सेना के जवानो के कटे
सिर आँखों के आगे घूमने लगे ...
कभी कवि एक कदम रखता था तो सौ राहे फूट पड़ती थी और वो उन सभी से गुज़र
जाना चाहता था ...
अब कवि कलम उठाता है तो सौ विषय एक साथ बिलबिला उठते हैं ....और वे
सभी इतने विद्रूप होते हैं कि कवि लिखना छोड़ मितली करने बैठ जाता है |
दामाद
भईया ई इण्डिया महान को का होई गवा है ?
अब देखिये एक बिचारे दामाद को लेकर आसमान सर पर उठाय लिहे हैं ..
अरे भईया हमारी संस्कृति में नाग और दामाद दोनों पूज्य होते हैं
दोनों को कटोरा कटोरा भर दूध पिलाइये और पा लागी करिये ..
पूत कपूत होय सकता है पर दामाद कबो कुदामाद हुआ है ? बताइये ..
अब उ भले चोर हो, उच्चका हो ..हमरी बिटिया को अधमरा कर डाले या मार ही
डाले पर तब भी पूज्य है ...
अरे भाई हम पाँव पखारे हैं उसका ..अब दो चार एकड़ जमीन के लिये काहे को
हाय हाय करना |
अरे राजा का दामाद सारे राज का दामाद होवे है ...सारा राज भी चट कर
जाये तो परजा को चाही की चूं ना बोले
और जब भी मुँह खोले तो यही बोले ....
‘दामाद जी अमर रहें हम भले ही
मर रहें’
परसाई और उनके क्लोन
विज्ञान ने 'क्लोन ' का आविष्कार बहुत बाद में किया , वहाँ से बहुत पहले साहित्य में 'क्लोन' तैयार हो चुके थे | यहाँ कमाल यह है कि गुरु अपने क्लोन नहीं बनाता चेले स्वयं को गुरु का क्लोन बना लेते हैं ......जैसे विज्ञान में एक सेल एक क्लोन के लिए काफी होता है वैसे ही ये क्लोन अपने गुरु की एक रचना या उसकी एक लाइन पढ़कर तैयार हो जाते हैं ..और कुछ ने तो एक शब्द भी नहीं पढ़ा होता उनके लिए तो बस गुरु का नाम ही साक्षात नारायण स्वरूप है ....
साहित्य में 'क्लोन ' नही विरासत होती है ...और विरासत को पाने वाला उसे वहां से आगे ले जाता है जहाँ उसने उसे प्राप्त किया था ...पर इसमें जोखिम ज्यादा है जिससे बचने के लिए क्लोनिकरण आसान तरीका है ..इसीलिए बोड़री की राख छूटने से पहले ही सद्य प्रसूत सहित्य सेवी स्वयम को परसाई,प्रेमचंद या मुक्तिबोध का 'क्लोन' बना लेते है लेकिन जैसे ईश्वर के पुत्रों ने बाद में ईश्वर के अंत कर दिया ...वैसे ही ये क्लोन'अपने 'ओरिजनल ' की हत्या कर देते है ...वे उसकी नज़र को इतना कुंद करते चलते है कि रुढिभंजक परसाई को स्वयं एक रुढि बना देते है ...
यह क्लोनिकरण की विडम्बना ही कही जायेगी कि जिस परसाई ने कभी खुद 'पुण्य स्मरण' का विरोध कर आलोचनात्मक स्मरण की राह का अन्वेषण किया था उसी परसाई का 'पुण्य स्मरण' कर उनके 'क्लोन' पुण्य बटोर कर अपनी दोनों दुनिया सवारने में लिप्त हैं ...
यह अब क्लोनो को तय करना है कि वे अपने काकून में रहकर नष्ट हो जाना चाहेंगे या उसे बेधकर एक नये ताने बाने का कच्चा माल बनना चाहेंगे ....वैसे वो जो भी तय करे ...यह तय कि इतिहास की धारा सारे कचरे को किनारे कर देगी ....उसमे सिर्फ वही बचा रह जायेगा जो निर्माल्य होगा ....|||
....टेंशन बिल
परसाई और उनके क्लोन
विज्ञान ने 'क्लोन ' का आविष्कार बहुत बाद में किया , वहाँ से बहुत पहले साहित्य में 'क्लोन' तैयार हो चुके थे | यहाँ कमाल यह है कि गुरु अपने क्लोन नहीं बनाता चेले स्वयं को गुरु का क्लोन बना लेते हैं ......जैसे विज्ञान में एक सेल एक क्लोन के लिए काफी होता है वैसे ही ये क्लोन अपने गुरु की एक रचना या उसकी एक लाइन पढ़कर तैयार हो जाते हैं ..और कुछ ने तो एक शब्द भी नहीं पढ़ा होता उनके लिए तो बस गुरु का नाम ही साक्षात नारायण स्वरूप है ....
साहित्य में 'क्लोन ' नही विरासत होती है ...और विरासत को पाने वाला उसे वहां से आगे ले जाता है जहाँ उसने उसे प्राप्त किया था ...पर इसमें जोखिम ज्यादा है जिससे बचने के लिए क्लोनिकरण आसान तरीका है ..इसीलिए बोड़री की राख छूटने से पहले ही सद्य प्रसूत सहित्य सेवी स्वयम को परसाई,प्रेमचंद या मुक्तिबोध का 'क्लोन' बना लेते है लेकिन जैसे ईश्वर के पुत्रों ने बाद में ईश्वर के अंत कर दिया ...वैसे ही ये क्लोन'अपने 'ओरिजनल ' की हत्या कर देते है ...वे उसकी नज़र को इतना कुंद करते चलते है कि रुढिभंजक परसाई को स्वयं एक रुढि बना देते है ...
यह क्लोनिकरण की विडम्बना ही कही जायेगी कि जिस परसाई ने कभी खुद 'पुण्य स्मरण' का विरोध कर आलोचनात्मक स्मरण की राह का अन्वेषण किया था उसी परसाई का 'पुण्य स्मरण' कर उनके 'क्लोन' पुण्य बटोर कर अपनी दोनों दुनिया सवारने में लिप्त हैं ...
यह अब क्लोनो को तय करना है कि वे अपने काकून में रहकर नष्ट हो जाना चाहेंगे या उसे बेधकर एक नये ताने बाने का कच्चा माल बनना चाहेंगे ....वैसे वो जो भी तय करे ...यह तय कि इतिहास की धारा सारे कचरे को किनारे कर देगी ....उसमे सिर्फ वही बचा रह जायेगा जो निर्माल्य होगा ....|||
....टेंशन बिल
…अब तक तो जवानी बाज़ार के भरोसे थी
अब पेंशन बिल के रास्ते बुढ़ापा भी बाज़ार के भरोसे होने जा रहा |
ये पेंशन बिल नहीं टेंशन बिल है ....
बुढ़ापे में हम अपने शरीर का उतार चढ़ाव देखेंगे या बाज़ार का ?
और निवेश कौन करेगा सरकार ...तब तो लुटिया डूबी समझो |
अच्छा हमारा एक सुझाव उन तक पहुंचा दो कि संविधान में समाजवादी
गणराज्य की जगह बाजारवादी गणराज्य लिख दिया जाये |
क्या है ....कि मरते समय कम से कम धोखा तो नहीं रहेगा |
झुग्गी हादसा
खबर दर्दनाक है लेकिन चूकी मरने वालो का कोई राष्ट्रीय ,अंतरराष्ट्रीय
महत्त्व नहीं है, ना ही हादसा राजधानी या महानगर में या किसी नेता ,अभिनेता के शहर
में हुआ इसलिये मीडिया को भी कोई टी आर पी नहीं दिखी |
लिहाजा ये हादसा किसी लाइम लाईट में आये बगैर गुमनामी के अँधेरे में
खो गया |
हादसा मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा का
है |
जहाँ विवेकानन्द वार्ड स्थित श्मशानघाट से लगी भूमि पर लाखों टन कचरे
का पहाड़ जमा हुआ है | इसी पहाड़ की खंदक से सटी कुछ झुग्गियां थी |प्रशासन को ना
बेलगाम गति से बढ़ते कचरे के पहाड़ की कोई चिंता रही और ना ही जान को जोखिम में डालकर तनती झुग्गियों की |
झुग्गीयां डरती तो जाती भी कहाँ ? वर्ना कोई नरक में झुग्गियां बनाता ही क्यों...?
हादसे वाले दिन लगातार बारिश
के चलते के चलते कचरे का पहाड़ भरभराकर कर झुग्गियों के उपर गिरा और इसी के साथ
कीड़े मकौड़े की तरह उनमे बसर करती
जिंदगियां भी नीचे दब गयी |
अब तक १२ ‘गरीबो’ की लाश कचरे के नीचे से निकाली जा चुकी है कितने और
दबे है कहा नहीं जा सकता |
हालांकि मुवावजे का कफ़न इनके जख्मो पर डाला जायेगा
लेकिन एक फेसबुकिया श्रद्धांजली इन जिंदगियों को हम भी दें ....जो हमारे पैदा किये हुये कचरे में
पली ...और उसी कचरे के तले घुटकर ,दबकर खत्म हो गयी |
यह गाडरवारा आपके शहर में भी हो सकता है ....
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