Skip to main content

Posts

Showing posts from January, 2017

जाड़े की उस रात

जाड़े की उस रात +++++++++++++++ सालीवाड़ा में वो जाड़े की एक रात थी | यहाँ से जबलपुर जाने वाली गाडी साढ़े बारह पर थी |जहाँ से बनारस के लिए मेरी ट्रेन सुबह चार बजे थी |   सालीवाड़ा  का बीमार और बदबूदार बस स्टाप चिथड़ी रजाइयों और कथरियों में घुटने मोड़ कर घुसा यहाँ वहां दुबका पड़ा था |  चाय-सिगरेट के टपरे पर एक पीला बल्ब दिलासा देते हुए जल रहा था जिसके नीचे बैठा में अपनी बस के इंतज़ार में था | जाड़े में शरीर काम करना भले बंद कर दे दिल काम   करना बंद नहीं करता और कमबख्त  यादों को जाड़ा नहीं लगता वे वैसी ही हरारत से हमारे भीतर मचलती रहती हैं | तो परियोजना का काम पूरे जोर पर था और मैं अपने घर से सात सौ किलोमीटर दूर भीमकाय मशीनों और मरियल मजदूरों के बीच पिछले तीन हफ्तों से मोबाइल पर वीडियो चैट करके जाड़े में गर्मी पैदा करने की नाकाम कोशिश जारी रखे हुए था |   सरकार किसी भी हालात में उपचुनाव में जीत पक्की करनी चाहते थी  इसलिए ऊपर से दवाब बना हुआ था,जिसके चलते मै घर जाने का कोई रिस्क नहीं ले रहा था | इस परियोजना पर ही हमारी कम्पनी की साख निर्भर थी और कम्पनी की साख पर हमारी नौकरी |मेरे बीबी ब

नींद में गुलाब

नींद में गुलाब ++++++++ पश्चिम की तरफ सरकते सूरज की रौशनी में तीनों सुनहरे हो रहे थे  | बालकनी के गुलाब  , लड़की के सर के चांदी के तार  और दीवार पर गुलाबों की एक पेंटिंग | लड़की और गुलाब इस वक्त एकसार हो चुके थे | बालकनी में घर के बहुत से सामानो  के बीच कई रंगो के  गुलबों  के गमले थे जिसमे खिलते गुलाब को देखते हुए लड़की के चेहरे पर मुस्कान खिल जाती थी और उसे हर एक गुलाब में एक गार्डन नज़र आने लगता था | वो स्कूल में याद किया ‘गार्डनिंग-माय हॉबी’  की पहली से लेकर अंतिम लाइन तक अपने भीतर बुदबुदाने लगतीं | हर लाइन के साथ वे उम्र की सीढियां उतरने लगतीं | और अपने बचपन के आँगन में जा पहुँचती | जहां सालीवाड़ा बस्तर में पिता फारेस्ट गार्ड थे | आंवला अमरुद इमली के पेड़ों के साथ गुलाब का एक छोटा सा बागीचा था | उस बागीचे में खेलते हुए एक लड़की सोचा करती कि दुनिया को एक गुलाब का बागीचा होना चाहिये | लड़की स्कूल में पढ़ती तो कक्षा के बाहर खिले गुलाब को देखती और सब सबक भूलकर सिर्फ इतना याद रख पाती दुनिया को गुलाब का बागीचा होना चाहिये | लड़की जब बड़ी हुई और कालेज पढ़ने गयी तो बेहद ऊदास हुई कि

हत्यारिन

सूक्ष्म कथा : हत्यारिन  ************************* संजीवनी तब संजू थी| संजू की नज़र बायोलाजी की किताब से उठकर सामने दीवाल पर गयी | जहां एक पखियारी छिपकली के मुंह में दबी फड़फड़ा रही थी | संजू केमुहसेनिकला "हत्यारिन" और पास रखा स्केल उसने छिपकली की तरफ दाग दिया |छिपकली गिरी और उसके मुंह से पखियारी आज़ाद होकरउड़ गयी | उस रात सोते समय संजू की छातीफूली हुई थी उसे लगा था उसने एक बड़ा काम किया| अब संजू डाक्टर संजीवनी है |उसका अपना "संजीवन-मेटरनीटी नर्सिंगहोम" है | एक दिन नर्सिंग होम से निकलने के पहले डा. संजीवनी को नर्स ने बताया कि १२ नंबर पेशेंट को आपरेशन रूम मेंशिफ्ट कर दिया है लेकिन उसके रिलेटिव के पास चार्ज जमा करने के लिए पैसे नहीं है | सुनना था कि डा. संजीवनी ने भद्दा सा मुंह बनाते हुए कहा जितने है लेकर तुरंत दफा कर दो और गाड़ी की तरफ बढ़ गयी | दूसरे दिन अखबार मेंखबर थी प्रसूता ने अपस्ताल के सामने सड़क पर बच्चे को जन्म दिया | जच्चा बच्चा दोनों ने दम तोड़ा ||

दुम और जंगल

सूक्ष्म कथा : दुम और जंगल;  ************************** ********* १) दुम +++++++ मै दम लाने के चक्कर में दुम काट दिया करता था| ' लेकिन हमें हिलती हुई दुम पसंद है' मेरी रचनाओ के पढ़ने के बाद कड़वा सा मुंह बनाते हुए सम्पादक महोदय में प्रकाशक की ओर ठेल दिया | प्रकाशक पान की पीक के साथ उन पर कुछ थूकने जा ही रहे थे कि मैं उन्हें समेटकर तेज़ी से उठा | उतनी ही तेज़ी से "वे" अन्दर आये और अपने झोले से लम्बी दुमो को निकालकर टेबल पर उनके सामने फैलाकर बैठ गये | कुछ सालों बाद "वे" सम्पादक की कुर्सी पर विराजमान थे ||| २)जंगल +++++++++ उनके शहर जाना हुआ | वे बोले ' चलिये आज जंगल पिकनिक कर आते हैं |' घंटो कार से भटकने के बाद शहर के मुख्यमार्ग से हटकर झाड़ियों की आड़ थी जिसे शायद आसपास केगाँव वालों ने दिव्यनिपटान के लिए बचा कर रखा होगा | हम वहां अपने साथ ले जाये गये टिफिन खाली करके सेल्फी लेकर लौट आये | रात उनके घर डिनर पर जाना हुआ| तीन लोंगो के लिए ६ बेडरूम के उस घर में दरवाजे खिड़की फलोरिंग बेड ड्रेसिंग डाइनिंग काउच सोफा सब का सब शानदार वुडन क्राफ्ट था | जिसकी खासियत वे ग

कथा :राखी और कवच

कथा : राखी +++++++++++++++++ आज के दिन जब दीदी की कलाई पर राखी बांधता हूँ और उससे रक्षा का वचन लेता हूँ तो लोग कहते हैं कि मै गलत परम्परा डाल रहा हूँ..| मै कहता हूँ नही ..बस परम्परा को सही कर रहा हूँ | मेरी बात समझने के लिए आपको मेरे बचपन में जाना होगा | हम पांच थे .. माँ ,बाबू, दीदी मैं और सिम्मो | कस्बे में घर के बाहरी कमरे में ही हमारी प्रेस की दूकान थी .. माँ पड़ोस से कपड़े लाती और बाबू मुंह में बीड़ी दबाये कपड़ो पर कोयले वाला प्रेस फेरते | बीड़ी की लत ने बाबू को जवानी में ही इतना बेदम कर दिया कि अब वे सिर्फ प्रेस में कोयला भर पाते और प्रेस फेरने का काम दीदी के जिम्मे आ गया | दीदी दिन भर काली चाय पीती और प्रेस करती | हाँ मुझसे और सिम्मो से जरुर कहती दूध पीया करो ..कमज़ोर दिखते हो | मेरे कालेज पहुँचते पहुँचते जब बाबू सिर्फ दवा के भरोसे रह गये तब दीदी ने बाबू की जगह ले ली | दीदी अब प्रेस के साथ हमारी पढ़ाई लिखाई के बारे में भी पूछती | जबरिया जेब में नोट डालकर सर पर हाथ फेरते हुए कहती चिंता मत कर खूब पढ़ | मेरा कालेज खत्म भी नहीं हुआ था.. कि सिम्मो कस्बे के ऑटो वाले के साथ भाग गयी | मैने अपन

फकीर औरअसर//

सूक्ष्मकथा : फकीर औरअसर ************************** *************** १) फकीर  _________________ फकीर को गुदड़ी से उठाकर दुकानदारों ने चांदी के सिंहासन में कैद कर दिया | फकीर के दरबार तक जाने वाले हर रास्ते पर उन्होंने इतने टोल टैक्स बेरियर बना दिए कि फकीर तक अब केवल मालदार आसामी ही पहुँच सकते थे | दुकानदारों के पलंग अब सोने के हो चुके थे | ++++++++++++++++++++++ २)असर ______________ वो अंधेरी बेंच पर बैठा था | सिगरेट के धुंए का छल्ला हवा में तैरा लेकिन ज़रा सी देर ही ठहरा | उसी बीच कुछ चेहरे , कुछ आवाज़े उभरी और डूब गयीं | लेकिन मुँह में धुयें की तरह ज़ेहन में उनकी कड़वाहट देर तक बनी रही | इलायची के दानों ने मुंह की कडवाहट को बदल दिया था लेकिन ज़ेहन की कडवाहट बिस्तर पर भी बनी रही || 3) सखा ______________ सखा बेचैन थे | मेरे कान में फुसफुसाये... ' हे सखे इस बार सावधान रहना .. मामा ने इस बार मुझे घेरने की नयी जुगत की है' "वो क्या ?" मैंने कान खड़े करके पूछा | ' इस बार वो मुझे क्रूर पहरेदारों से सज्जित कारागार में में नहीं अपितु महल के भीतर भोले-भाले भक्तो से घिरे सोने के

फूल / गौसेवक / विडम्बना

सूक्ष्म कथा : फूल  +++++++++++++++++ बड़ी देर भटकने के बाद वो फूल तक पहुंचा | उसने उसके चारों तरफ घूमकर यकीन करना चाहा कि वो एक फूल ही था | बड़ी हिम्मत कर उसने उसे छुआ और सूंघा भी | आखिर में हारकर तसल्ली करने के लिए उसने गूगल में टाइप किया "फूल" और सर्च किया | फूल के बारे में वो बड़ी देर तमाम बाते  पढ़ते रहा..तमाम चित्र देखते रहा  | उधर फूल  जब उब कर थक गया एक उसांस लेकर झड़ गया  | लघु कथा :गो सेवक  +++++++++++++++ वे मेरे मित्र हैं | कपड़े का धंधा करते हैं |दुकान की सजावट देखकर लगता है धंधा फल-फूल रहा है  साथ में गो सेवक भी हैं | दुकान में गौमाता की मूर्ती रखते हैं जिसके सींग चांदी से मढ़े हैं और जिसके उदर में गो सेवा का चंदा जमा होता रहता है | मै उनकी दुकान कुछ लेने नहीं उनकी मुस्कान देखने जाता हूँ | जो वे हर ग्राहक के दुकान की ओर रुख करते ही बिछा देते हैं | आज शाम भी उनकी दुकान पर खड़ा उनकी मुस्कान का नजारा कर रहा था |जिसे बीच बीच में समेटकर भजन गुनगुनाते हुए वे गौ माता की मूर्ती को चमका रहे थे | अचानक मैंने देखा कि उनकी अर्धचन्द्र मुस्कान तीखे त्रिशूल की त्योरी में बदल गयी