सूक्ष्म कथा : सम्भव असम्भव ************************************ आचार्य की जीवनी का अंतिम अध्याय लिखा जाना था | उस अंतिम साक्षात्कार में आचार्य ने अपनी ग्रीवा तानकर अपनी उपलब्धियों का कुछ यूं बखान किया ... “ मैंने कई असंभव कार्य संभव कर दिखाये ..जैसे शब्दों को मूसल बनाकर विपक्षियों को कूट कूटकर विचूर्ण कर दिया ... आलोचना की एक फूंक मारी और आसमान को सौ योजन ऊपर खिसका दिया ...मेरे एक इशारे पर नदिया पर्वत पर जा चढ़ ी... मैंने उंगलियों के फंदे में वायु को बंदी बना लिया ...मैं चाँदनी को चादर की तरह लपेटकर सितारों से छुपा छुपी खेला किया ....|” एक अल्प विराम के बाद आचार्य ने उच्छवास के साथ कहा .. “पर मै स्वर्गवासी पत्नी की शंका का समाधान ना कर सका जो अंत तक मानती रही कि मेरी प्रेम कविताओं की प्रेरणा मेरी शोध छात्रा है |” ...और दीवार पर टंगे चित्र को निहारते हुये गाव तकिये पर निढाल हो गये ||| ################################################################################## चैरिटी @सुई मुई ++++++++++++++++++++++++++++++++ वे गहने बनवाकर तुड़वाकर बोर हो गयीं | वे साड़ी-बिंदी-म
कथ्य,शिल्पऔर अंतर्निहित सन्देश तीनों ही दृष्टि से अकिंचन ,जीवित फिर भी त्रणवत