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Showing posts from July, 2016

अँधा और ऐचाताना

सूक्ष्म कथा ...अंधा  ____________________ हमारी पॉलिसी थी कि हम विकलांगऔर वृद्ध लोगों को सम्मानदेते हुए उन्हें चार्ज में से पच्चीस फीसदी रियायत भी देते थे | उसने अपना परिचय पत्र बढ़ाया.... ब्लाइंड मैंने जरूरी लिखापढ़ी निपटाई और उनके सम्मान में उन्हें उनके रूम तक छोड़ने गया... रूम में टेबल-कुर्सी-फोन-फ्रिज कीजानकारी देने के बाद मैंने उन्हें बिजली के स्विच के बारे में बताया | पंखा एसी च्रार्जिंग आदि के स्विच बताकर जब मै लौटने को हुआ तो उसने मुझे टोका .. 'और लाईट का स्विच ..?' "लाईट.. लेकिन आपको उसकी जरूरत कहाँ पड़ेगी?"मैंने हल्के से हंसते हुए तंज़ किया | 'लेकिन आपके लिए तो पड़ेगी ...ना' कहकर वो होंठों की किनारी से मुस्कुराया| मैंने अनुभव किया कि मै आखें होते हुए भी देख नहीं पा रहा था || कथा : ऐंचाताना ++++++++++++++++ बात पुराने जमाने की है , जब ना तो ऐसे बाज़ार हुआ करतेप थे् और ना ज्ञान-विज्ञान ने ऐसी तरक्की की थी | तब प्रेम अंधा हुआ करता था और बेचारा गली गली मारा मारा फिरा करता था | लेकिन उसके चेहरे की लुनाई ऐसी थी कि आते जाते की टकटकी बंध जाती | समय बीता .. ब

दीन ईमान /सिक्का / बैंच वाला बूढ़ा

सूक्ष्म कथा : दीनईमान +++++++++++++++++++++++ मई के सुलगते सूरज में मज़ार से लगे पेड़ की छाया भी मानो सुलग रही थी | बगल की बिल्डिंग में उसका इंटरव्यू लंच के बाद था ... लेकिन सुबह से उसने इस छाया के नीचे डेरा जमा रखा था और भीतर से निकल रहे उम्मीदवारों को टटोल रहा था | पसीना पोछते हुए उसकी निगाह मज़ार के सामने बैठे फकीरों में से एक पर ठहर गयी ...हरे कुरते और सर पर बंधे रुमाल में भी उसने उसे पहचान ही लिया | " अरे ये स्याला तो हाई कोर्ट के मंदिर केसामने हर मंगलवार और शनिवार तिलक लगाकर चोला पहनकर बैठता है ..आज शुक्रवार है तो चोला बदलकर यहाँ मजार पर ..... |"..सोचते हुए उसका मुंह हिकारत से टेढ़ा हो गया | उसने सर को हलका झटका दिया और बुदबुदाया... स्याले आदमी का आज कोई दीन ईमान ही नहीं बचा है | इस बीच मोबाइल; वाईब्रेट हुआ | देखा तो घर से कॉल थी | उधर से पापा ने हिदायत दी ..बेटा मज़ार में माथा टेक कर मन्नत मांग लेना | वो जैसे नीद में ही हरकत में आ गया | उसने फोन रखने के साथ ,,झट से रूमाल निकालकर माथे पे लपेटा ... और नींद में ही दरगाह की तरफ तेज़ कदमो से