सूक्ष्म कथा ...अंधा ____________________ हमारी पॉलिसी थी कि हम विकलांगऔर वृद्ध लोगों को सम्मानदेते हुए उन्हें चार्ज में से पच्चीस फीसदी रियायत भी देते थे | उसने अपना परिचय पत्र बढ़ाया.... ब्लाइंड मैंने जरूरी लिखापढ़ी निपटाई और उनके सम्मान में उन्हें उनके रूम तक छोड़ने गया... रूम में टेबल-कुर्सी-फोन-फ्रिज कीजानकारी देने के बाद मैंने उन्हें बिजली के स्विच के बारे में बताया | पंखा एसी च्रार्जिंग आदि के स्विच बताकर जब मै लौटने को हुआ तो उसने मुझे टोका .. 'और लाईट का स्विच ..?' "लाईट.. लेकिन आपको उसकी जरूरत कहाँ पड़ेगी?"मैंने हल्के से हंसते हुए तंज़ किया | 'लेकिन आपके लिए तो पड़ेगी ...ना' कहकर वो होंठों की किनारी से मुस्कुराया| मैंने अनुभव किया कि मै आखें होते हुए भी देख नहीं पा रहा था || कथा : ऐंचाताना ++++++++++++++++ बात पुराने जमाने की है , जब ना तो ऐसे बाज़ार हुआ करतेप थे् और ना ज्ञान-विज्ञान ने ऐसी तरक्की की थी | तब प्रेम अंधा हुआ करता था और बेचारा गली गली मारा मारा फिरा करता था | लेकिन उसके चेहरे की लुनाई ऐसी थी कि आते जाते की टकटकी बंध जाती | समय बीता .. ब
कथ्य,शिल्पऔर अंतर्निहित सन्देश तीनों ही दृष्टि से अकिंचन ,जीवित फिर भी त्रणवत