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Showing posts from March, 2013

गठजोड़

  गठजोड़ ‘ नव रत्न ज्वेलर्स ’ के डी डी सेठ ,  ट्राई सायकल यानी तिपहिया हाथगाड़ी दान कर धर्म और धंधे दोनों में चांदी पीट रहे हैं   | इसकी शुरुआत तब हुई जब  उनके इशारे पर दरोगा ने उनके नालायक नौकर की ,टांग तुड़वा दी और वे प्रायश्चित स्वरूप  तिपहिया लेकरअस्पताल जा पहुँचे | वहीँ से उनके भीतर परोपकार की गंगा जो बही ,तो हर माह बाकायदा कैमरे और रिपोर्टरों के आगे शिविर लगाकर अपाहिजों को तिपहिया दान करने लगे |   “ नव रत्न ज्वेलर्स ” से दान प्राप्त की मोटी ‘ सचित्र ’ इबारत अपनी पुश्त पर लिखे हुए जब तिपहिया गाड़ी गली मोहल्लो में घूमती  ,तो सेठ का धंधा और धर्म दोनों धन्य  जाते हैं  |              लेकिन पिछले कुछ दिनों से सेठ दो बातों को लेकर परेशान थे पहली ये  कि जहाँ हर माह ३०-४० लोग तिपहिया लायक हो जाते थे वहाँ अब १०-२०  भी मुश्किल से मिल रहे  थे यानी धर्म खतरे में था | दूसरी तरफ छोटे साहबजादे किसी बार गर्ल के चक्कर में उनकी बड़ी सी नाक कटाने पर तुले थे |          लेकिन उस दिन उन्हें बहार फिर से लौटती दिखी  ,जब  छोटे साहबजादे ने बाइक पर स्टंट करते हुए ३ लोगों  की टांग तोड़ दी |

पुनर्विलोकन

सूक्ष्म कथा : पुनर्विलोकन **********************************  शादी की स्वर्णिम सालगिरह  पर “ he ” और  “ she ” ने  तय किया कि वे  साथ बिताये यादगार लम्हों को बारी बारी से दोहरायेंगे ..| “ he ” ने तब एक गीत गाया जिसमें सुहानी राते थी ,छायेदार रास्ते थे , प्रेममयी सुन्दर समर्पित संगिनी थी  ..| अपनी बारी पर  “ she ” ने एक कहानी कही  जिसमें शिकवा था , नील के निशान थे  , टूटन थी ,छलावा था | “ he ” ने हैरानी और गुस्से  से पूछा ऐसा हमारे बीच कब हुआ ?? “ she ” ने सभी  तारीखे ,प्रसंगों के साथ सिलसिलेवार दुहरायी | “ he ” चीखा  ये झूठ है वर्ना मुझे  कुछ तो याद रहता ???? “ she ” ने पूरी ताकत से मुस्कान ओढ़ने की कोशिश की और धीरे से कहा  ...  “ डार्लिंग जो सहता है  सिर्फ उसे ही याद रहता है | ” ____________________________________________________________   खेल खत्म होने के पहले सिरहाने रखे फूल मुरझा चुके थे और केक पर सजी  मोमबत्तियां धुआँ छोड़ रहीं थी  |||

फैसला

सूक्ष्म कथा : फैसला “ तो तुमने कहा कि गाय पवित्र पशु नहीं है ? ” कड़क आवाज़ कड़की “ जी नहीं , मैंने सिर्फ ये कहा था कि बकरी भी पवित्र पशु है | ” गले से एक फँसी आवाज़ निकली | “ हूँ... मतलब तो वही हुआ ...सफाई में कुछ और कहोगे | ” कड़क आवाज़ और कड़क हुई | “ जी मुझे बताया गया था कि यहाँ सोचने की आजादी है | ” फँसी आवाज़ और फँसती गयी | “ बेशक.. मगर दूसरों की तरह सोचने की आज़ादी है ...हटकर सोचना द्रोह है ...तुम्हारी कोई आख़री इच्छा ? ” कड़क आवाज़ फंदे की तरह कस गयी थी | “ जी मेरी खोपड़ी तोड़कर मेरा भेजा कुत्तों को खिला दें ...मै इस नामुराद चीज से छुटकारा चाहता हूँ | ” फँसी आवाज़ झटके से निकली और दीवारों पर सर पटकती रही !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! आज भी शहर के ऊपर सन्नाटे का गिद्ध चक्कर काट रहा है ||||                         ( चित्र : अद्रें मोर्गन साभार गूगल )

झालर

झालर ************* मिलौनी गंज का आसमान शाम होते ही पतंगों से भर जाता और सुनहरी शाम सतरंगी हो जाती | पतंगें हम बच्चों के पँख थे जिनसे हम उड़ान भरते | लेकिन मै अपनी पतंग उडाया नहीं करता था ..तैराया करता था | दरअसल आसमान मेरा समन्दर था ....|| तो साहब , किस्म किस्म की ऊँची ऊँची पतंगों के बीच मेरी मामूली पतंग नीचे तैरती रहती लेकिन सारा मिलौनिगंज मेरी पतंग को  हसरत और शाबाशी भरी नज़रों से देखता रहता | वजह थी पतंग की झालर जिसे मैंने सुनहरी गोट से सजा रखा था | कोई उसे हनुमान की पूछ कहता तो कोई पतंग की चोटी.. लोगों की वाहवाही के साथ मेरी पतंग की झालर भी लंबी होती गयी | एक दिन मैंने देखा कि मिलौनी गंज  उस झिलमिल सितारों वाली झालर  के लिए वाहवाही कर रहा था , जिसे मै नहीं बल्कि चौधरी का लड़का उड़ा रहा था .... फिर क्या ? मैंने वाह वाही की होड़ में पतंग के साथ दो झालर लगा दी ...फिर तीन ..फिर ४ ...| मैं भूल गया था कि पतंग बराबर गोते खाकर नीचे आ रही थी ....| आखिर में झालर के बोझ से दबी पतंग गूलर के ऊँचे पेड़ पर जा फँसी ... मैंने उसे जब नीचे उतारा तो  झालरों  के अ