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Showing posts from November, 2016

सुअर और सोना (pig and gold )

सुअर और सोना ++++++++++++ (A pig painted gold is still a pig ..robert jorden ) सृजन कलाकार संघ का शुक्रिया अदा करता हूँ कि उन्होंने मेरी कृति 'सुअर और सोना ' को प्रथम पुरूस्कार के लिए चयनित करते हुए मुझे सृजन सम्मान से सम्मानित किया | कला तो जीवन की ऋणी होती है ,यदि मनीकान्त मेरे जीवन में नहीं आये होते तो शायद ही इसकी रचना हो पाती | रंग और रेखाएं भले कुछ और है लेकिन इसमें अक्स मनिकांत का ही है | बात समझाने के लिए आपको शुरू से सुनाना होगा | तो आज से १० साल पहले फाइन आर्ट की डिग्री लेकर में बेरोजगार बैठा था | स्कूलों में ड्राइंग मास्टर के लिए आवेदन दे रखे थे लेकिन या तो उनकी सेलरी कम थी या दूसरी शर्ते भी थे जैसे ड्राइंग सिखाने के अलावा ऑफिस का क्लर्कियल काम भी करना होगा | मैंने तय किया कि अपनी ड्राइंग क्लास खोलूँगा और पत्र पत्रिकाओं के लिए स्केच करूँगा | 'तूलिका' नाम से ड्राइंग क्लास शुरू कर दी | स्कूल -स्कूल जाकर पम्पलेट बांटे |चित्रकला की स्पर्धा कराकर क्लास के लिए बच्चे जुटाए | बहन से थोड़ा कर्ज लिया और शहर में अपनी क्लास के फ्लेक्स लगवा दिए | एक बच्ची थी रिद्धि, शह

कालाधन (लघुकथा )

कालाधन ++++++ उनका यह अटूट विश्वास था कि उन्हें हर कार्य के लिए देवीय प्रेरणा प्राप्त होती है | हालांकि उनके सिवाय किसी और ने  इसका समर्थन  नहीं और किया तो खंडन भी नहीं | इसलिए शून्य के विरुद्ध एक मत से उनका दावा सिद्ध होता है | तो उन्होंने उसी देवीय प्रेरणा से कमीशन की एक एक पाई जोड़कर करोड़ो रूपये इकट्ठा कर लिए | अब चूंकि यह देवीय प्रेरणा से संचित धन था इसलिए इस पर किसी सरकार को टेक्स देना उन्हें गंवारा ना था | जब कोई उनके इस देवीय धन को काला धन कहता तो वे पहले इस धन को देखकर तसल्ली करते कि यह काला नहीं हरा है और फिर काला धन कहने वाले की सात पुश्तों के साथ मुंह काला करने लगते | एक दिन जब सरकार  ने ऐलान कर दिया कि कल से ऐसा सारा धन  राज्य  में अप्रचलनीय  हो जायेगा | ऐलान सुनकर  पहले तो वे मरते मरते बचे किन्तु  होश में आते ही उन्हें देवीय प्रेरणा प्राप्त हुई कि देवता सरकार से बड़ा है जो धन सरकार अस्वीकार कर दे उसे देवता फिर भी ग्रहण कर सकता है | उन्होंने झट से दीवार और जमीन फाड़ कर ऐसा सब धन बोरो में भरा और देवता को समर्पित कर दिया | लौटते हुए देवता उन्हें सोने की सौ कुल्हाड़ियाँ

तीन लघु कथाये : हनुमंत किशोर

एनकाउंटर  -------------- गोल मेज कांफ्रेंस जारी थी ।सबके माथे पर चिंता की लकीरें खींची हुई थीं । 'उसके पास से एक माचिस ,तीन किताब .दो कोरी नोटबुक ,एक पेन और चार नंबर बरामद हुये थे बस ' नीली वर्दी वाला साहब पसीना पोछते हुये बोला  'लेकिन रात को व्ही.आई.पी. इलाके मे घूमने कोई कारण भी नहीं बताया स्याले ने ' हरी वर्दी ने ने मुट्ठी भींचकर कहा 'उसकी किताब मे लिखा है देश जरनल से बड़ा है । शक्ल और बातों से साफ है कि वो देश की तरह नहीं सोचता..था.. ' पीली वर्दी ने सख्त लहजे मे कहा 'लेकिन इतना पर्याप्त नहीं है उसे देश द्रोही सिद्ध करने के लिये' नीली वर्दी ने चिंता जाहिर की । 'माचिस के अलावा कुछ भी ऐसा नहीं मिला जिससे वो कुछ कर सकता था ...हम क्या कहें अब ? ' एक साथ सारी वर्दियों ने भुनभुनाते हुये चीफ की तरफ़ आदेश के लिये देखा । चीफ का चेहरा तन चुका था । 'यही कि आत्म रक्षा मे मुठभेड़ के दौरान मारा गया '....चीफ ने टेबल पर मुक्का मारते हुये कांफ्रेंस बर्खास्त कर दी..... दूसरे दिन सबसे बड़ी सुर्खी थी "खतरनाक देश द्रोही एनकाउंटर मे मारा गया ' ॥ ॥हन