अथ घंटाल कथा (१) उसने रद्दी बाज़ार से दो चार किताबें खरीदी.. फिर एक लाइन इधर से दूसरी उधर से मार कर एक नयी किताब टीप दी | उस किताब को अपने नाम से पेंटेंट कराया और मुम्बईया हीरोइन से उसका ब्लर्ब लिखवाकर, धाँसू कवर के साथ मार्केट में लांच किया | और मीडिया में मेनेजमेंट गुरु के नाम से स्थापित हुआ | फिर ‘ मुक्ति ’ के बाज़ार में नयी संभावनायें पाकर, उसमे उसी किताब को दूसरे नाम से हालीवुड की हीरोइन से ब्लर्ब लिखाकर लांच किया | हम उसे इन दिनों ‘ स्प्रीचुअल गुरु ’ के नाम से पूजते हैं ||| अथ घंटाल कथा (२) बचपन में डाकुओ के चुंगल फंस गया तो उन्होंने मुक्ति के नाम पर फिरौती मांगी और पाकर मुक्त कर दिया | जवानी में ‘ घंटाल जी ’ के चुंगल में फंस गया तो उन्होंने मुक्ति के नाम पर श्रद्धा मांगी ,फिर अंध श्रद्धा मांगी और फिर दान दक्षिणा के साथ श्रद्धा मांगी | उनके चुंगल में धोखे से क्या फंसा आज तक रिहा ना हो सका | डाकू इन दिनों सलाखों के पीछे है मगर ‘ घंटाल ’ जी का सिहासन ऊँचा उठता जा रहा है | उनका सिंहासन श्रद्धालुओं के ऊपर टिका है | प्रला
कथ्य,शिल्पऔर अंतर्निहित सन्देश तीनों ही दृष्टि से अकिंचन ,जीवित फिर भी त्रणवत