सूक्ष्म कथा : अनहोनी “ सुनो जी ...सुनते हो ” ‘ हूँ...... ’ “ छत पर कोई चल रहा है ...देखो चोर ना हो ? ” ‘ चोर दबे पाँव चलता है ....ये चोर नहीं है...सो जा | ’ “ तो इतनी रात को कौन होगा ? ” ‘ ऊँट होगा ...सुबह चला जायेगा | ’ “ ऊँट !!..मसखरी मत करो | ऊँट भला छत कैसे चढ़ सकता है ? ” ‘ क्यों नहीं चढ़ सकता ? जब चीन हमारा भाई हो सकता है | ‘ फेंकू ’ असाम्प्रदायिक हो सकता है | ‘ पप्पू ’ देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कर सकता है तो ऊंट भी छत चढ़ सकता है ...और अब सो जा कल सुबह की शिफ्ट है | ’ और दोनों करवट बदलकर सो गये |||| (चित्र गूगल साभार )
कथ्य,शिल्पऔर अंतर्निहित सन्देश तीनों ही दृष्टि से अकिंचन ,जीवित फिर भी त्रणवत