Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2013

अनहोनी

सूक्ष्म कथा : अनहोनी “ सुनो जी ...सुनते हो ” ‘ हूँ...... ’ “ छत पर कोई चल रहा है ...देखो चोर ना हो ? ” ‘ चोर दबे पाँव चलता है ....ये चोर नहीं है...सो जा | ’ “ तो इतनी रात को कौन होगा ? ” ‘ ऊँट होगा ...सुबह चला जायेगा | ’ “ ऊँट !!..मसखरी मत करो | ऊँट भला छत कैसे चढ़ सकता है ? ” ‘ क्यों नहीं चढ़ सकता ? जब चीन हमारा भाई हो सकता है | ‘ फेंकू ’ असाम्प्रदायिक हो सकता है | ‘ पप्पू ’ देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कर सकता है तो ऊंट भी छत चढ़ सकता है ...और अब सो जा कल सुबह की शिफ्ट है | ’ और दोनों करवट बदलकर सो गये |||| (चित्र गूगल साभार )

फौजी डब्बा

फौजी डब्बा  टेशन पर तिल रखने की जगह ना थी  | ट्रेन आयी तो जितने अंदर थे उतने उपर भी | छोटे बच्चे को गोद में चाँपे एक स्त्री को पायदान पर लटका देख गुरुजी को खूब लड़ी मर्दानी याद हो आयी || अचानक एक बोगी को खाली देखकर गुरुजी  उस ओर  तेज़ी से लपके | पहुँचेतो बोगी अंदर से बंद थी ..और गेट पर खड़िया से लिखा था .. मिलेट्री  | गुरुजी रिरियाये ........ प्लीज . प्लीज प्लीज....गूं गूं गूं गूं गूं गूं गूं गूं गूं गूं *** उनकी हर रिरियाहट पर खिड़की से एक कटोरा कट चेहरा गोली की तरह गरजता ....फौजी  बोगी है बाबा  आगे बढ़ो ... गुरूजी गार्ड से लेकर टीसी तक चक्कर मार आये सभी ने कहा ... ‘ डब्बे में फौजियों ने कब्ज़ा कर लिया है  ..मगर वे कुछ नहीं कर सकते ...उन्हें ही एडजेस्ट करना होगा | ’ गुरुजी ट्रेन की सीटी के साथ फिर उसी डब्बे की तरफ तेज़ी से लपके |  इस बार कटोरा कट  बम की तरह फटा .. ‘ अबे बुड्डे कहा ना फौजी डब्बा है ...आगे जाकर क्यों नहीं मरता ’    पर  गुरुजी चलती ट्रेन में दरवाजे पर झूल गये .... उन्हें यकीन था उनपर तरस खाकर कोई फौजी गेट खोल देगा .... बोगी खुलवाने के लिए गुरूजी

उज्जड

उज्जड ********* वे मुझे तमाशबीन निगाहों से देख रहे थे जब मै नूडल्स को उंगिलयों से उठाकर खा रहा था | मै उनका मनोरंजन था इसलिए  बर्दास्त के भीतर था | जब मै उनके सोफे पर पालथी मारकर बैठ गया तो किसी ने इसे मेरी मौलिकता तो किसी ने प्राकृतिक अवस्था कहा | एक कृत्रिम महिला ने मेरे पसीने की गंध को बेहद उद्दीपक बताया | सब बढ़िया चल रहा था | मै विजातीय होकर भी उनके बीच रम गया था | पर जब किसी ने कमरे की हवा गन्दी कर दी और सब लोगों ने परफ्यूम भींगे रूमाल नाक पर धर लिये, तब मुझसे नहीं रहा गया | मैंने उस बदतमीज की हथेली पर लवण भास्कर चूर्ण रखा और उसे शौचालय की ओर धकेल दिया | तभी उन्हें लगा कि उनका पाँव गोबर में पड़ गया है | सभा ने मुझे उज्जड कहकर फटकारा और बाउंसरों की मदद से दरवाज़े के बाहर फेंक दिया |||| (चित्र गूगल साभार )

तमीज

 सूक्ष्म कथा : तमीज ******************************* उसमे तमीज़ कूट कूट कर भरी थी   ... दरवाज़ा खुला होता है यहाँ तक कि मै भी सामने ही होता फिर भी वो दरवाज़े पर दस्तक देकर  बा अदब पूछता  “ क्या मै अंदर आ सकता हूँ ? ” पर उस दिन लगा कि उसकी तमीज़ का मुरब्बा बनाकर उसे ही परोस दूँ .. जब मेरे पैबंद लगे गिरेबान को फाड़कर उसने भीतर झाँका , और ठठाकर हँसने लगा |||| (चित्र गूगल साभार )

धतूरा

सूक्ष्म कथा :धतूरा ‘ भैया सरकार ’ का  तब नया अवतार हुआ | जब उनकी शोभा यात्रा में ‘ गुल्लर ’ पत्थर बरसाने लगा और ‘ भैया सरकार ’ ने उसे ना केवल माफ किया बल्कि साथ मे हवेली ले आये | हुआ यूँ कि सरकार के लठैत जैसे ही बढ़े, ‘ गुल्लर ’ की माँ  सरकार के कदमों मे गिरकर बोली कि लड़कपन में धतूरा खा लेने से ‘ गुल्लर ’ सही गलत का फर्क भूल गया है | हवेली में ‘ भैया सरकार ’   उसे  बड़े लाड़ से  धतूरे का  बीज मिला स्पेशल चिकन सूप पिलाते जिससे   ‘ गुल्लर ’ कुछ हफ्तों में ही लाल गिरदान हो गया | वो अब दो टांगो वाला कुत्ता बन चुका था | इधर ‘ भैया सरकार ’ उसे जिस पर छू कर देते वो या तो अस्पताल पहुँच जाता या श्मशान | उधर   ‘ गुल्लर ’ के लिए हर गुनाह मुआफ था क्योंकि डाक्टरी सर्टिफिकेट में वह दिमागी तौर पर अनफिट  था |       *****    *****     ***** ‘ भैया सरकार ’ की सल्तनत के अकेले वारिस मुन्ना सरकार भी   ‘ गुल्लर ’ की तरह ताक़तवर होने के लिए स्पेशल चिकन सूप चोरी चोरी पीने लगे | |उनकी आँखों में भी वही लाल डोरे तैरने लगे जो गुल्लर की आँखों में तैरा करते थे | ‘ भैया सरकार

जुड़वाँ

सूक्ष्म कथा : जुड़वाँ (बतर्ज़ सिनेमास्कोप ‘दीवार’ ) **************************************** वे जुड़वाँ थे |  बचपन में एक बस्ती की तरफ खेलते हुए निकल गया |  जहाँ रिंग मास्टर की पारखी नज़र उस पर पड़ी और उसने उसे सर्कस में भर्ती कर लिया | उस ने रिंग मास्टर के कोड़े पर ऐसे करतब दिखाये कि लोगों ने दाँतो तले उँगली दबा ली | वह ‘गब्बर’ के नाम से मशहूर हुआ | दूसरा जंगल में खाता खेलता गुमनाम रहा आया | यहाँ सुविधा के लिए उसे ‘बब्बर’ कह लेते है | तो जनाब .... माँ की बरसी पर जब दोनों मिले तो अपनी मोम से कड़क बनायी गयी मूँछो को ताव देता हुआ गब्बर गुर्राया . “ मेरे पास फाइव स्टार पिंजरा है |लंच में मुर्गा है, डिनर में बकरा है |अभिनन्दन ग्रन्थ हैं , सम्मान समारोह हैं |डिग्रियाँ हैं ,मेडल हैं|....तुम्हारे पास क्या है ?” “मेरे पास जंगल है ,आज़ादी है |”...‘बब्बर’ दहाड़ा और छलाँग मारकर झाड़ियों में गायब हो गया ||||

envelopes ( लिफ़ाफ़े )

सूक्ष्म कथा : लिफ़ाफ़े ************************** * लाला के यहाँ से लौटकर सुक्कू बुआ धड़ाम से देहरी पर बैठ गयीं | नासपिटा जाने क्या चाहता है ? तीन रात से आँख फोड़कर  लिफ़ाफ़े बनाये और हरामी ने सब छाँट दिये .बुआ एक सांस में बडबडाई  ...और चिल्लाई ' बिट्टो..ज़रा पानी ला '..| पानी पीते पीते बुआ ने पूरी राम कहानी सुना डाली कि लाला  पिछले कुछ महीनो से आधे से ज्यादा लिफ़ाफ़े सही नहीं है कहकर छाँट  देता है औ र ३०० की जगह १०० , ५० टिका देता है| ‘ला मुझे दे देखती हूँ कु** को’ ....बिट्टो बचे लिफ़ाफ़े लेकर तीर की तरह छूटी और लौटी तो २५० रूपये बुआ के हाथ में धर दिये |  बुआ ने सवालिया निगाहों से देखा तो बिट्टो बोली .. “डर मत वो मठहा बिलार हांड़ी में मुंह मारना चाहता है पर में भी तेरी सिखाई  बिल्ली हूँ मरदूद का मुंह नोच लूंगी ..”  बिट्टो ने दुपट्टा कमर में कसा और चौका बासन करने निकल गयी | बुआ की आँखों में अपनी बिल्ली को लेकर संतोष था ... और मुठ्ठी में बंद रुपयों से आने वाली दमे की दवा को लेकर राहत | (चित्र : गूगल साभार  पिकासो )
सूक्ष्म कथा : हिसाब  (हमने अपनी क्रूरताओं को खूबसूरत लिबास पहना रखा है ) ************************** ************** काली कुरती वाले ने पीली कुरती वाले को रोका और दो लात लगाकर चीखा.. “ तुम्हारे बाप ने मेरे बाप को गाली दी थी ...आज हिसाब सूद समेत बराबर |” (एक और पीढ़ी बाद......) पीली कुरती वाला घुड़सवार , काली कुरती वाले को बर्छी घोंप कर नाचने लगा ... “ तुम्हारे बाप ने मेरे बाप को मारा था.. ...आज हिसाब सूद समेत बराबर |” (कुछ और पीढ़ियों बाद ..) नारे लगाते हुआ हुजूम ...बस्ती में घुसा | औरतों के साथ बलात्कार किये ...बच्चो को संगीनो पर उछाला... और अट्टहास कर बोला “...आज हिसाब सूद समेत बराबर |” ये देख...बूढ़ा आसमान छाती पीटकर विलाप करने लगा .. “ हाय हाय ..ये कौन सा हिसाब है जो मासूमो ,मजबूरों और बेकसूरों की कीमत पर बराबर किया जा रहा ..|” बूढ़े आसमान का विलाप अब भी अनसुना है ||| ( चित्र साभार गूगल)

मॉल के अन्दर और बाहर..

सूक्ष्म कथा :मॉल के अन्दर और बाहर. . ************************** ********* तफरी पर निकले 'गॉड जी ' चीन के एक मॉल में घुसे और भीतर ही भीतर अमेरिका में जा निकले | भीतर यह देखकर उनके आश्चर्य का पारावार ना रहा कि सब के पास खाने को पिज़्ज़ा बर्गर है पहनने को ब्रांडेड कपड़े हैं स्वागत के लिए आतुर सुन्दर लड़के लडकियां है |...बानी और पानी सब एक रस होकर ,दुनिया एक गाँव बन गयी है |  ‘मै इन्हें भले एक ना कर  सक मगर बाज़ार ने सब भेद भाव मिटाकर दुनिया को एक कर दिया ‘ 'गॉड जी' ने खुश होकर सोचा | पर बाहर निकले तो ये देखकर गश खा गये कि भीतर के लोग जितने मालामाल हैं बाहर के लोग उतने ही कंगाल हैं ...भीतर जितनी समरसता है बाहर की दुनिया जाति धर्म भाषा और क्षेत्र में उतनी ही बँटी है | गॉड जी' जी तुरंत अपनी नोट बुक में दर्ज किया कि क्या दुनिया का बँटा होना बाज़ार के एक होने में मदद करता है ?और क्या मॉल की खुशहाली का बाहर की कंगाली से कोई समानुपातिक संबंध है ? मगर स्वर्ग लौटकर 'गॉड जी' किसी निष्कर्ष पर पहुँचते इसके पहले ही उनकी नोटबुक चोरी हो गयी कहते हैं इसमें सी आई ए का हाथ है |