जंगल राज़ साहेब की नज़र भुइयाँ पर थी .. पर एक दिन उसका बाप हिरसा टंगिया लेकर दौड़ पड़ा.. साहेब मौके की ताक में बैठ गया | मौका उस दिन मिला जब विज्जू लकड़ी चुराकर शहर ले जाते पकड़ा गया | साहेब ने कहा विज्जू आज चुंगी नहीं गवाही लगेगी | लकड़ी भी थी गवाही भी थी और मुजरिम भी था | हिरसा का चालान कट गया और वो पिछले ६ महीने से बड़े घर का मेहमान है | साहेब ६ महीने से भुइयाँ के साथ उसे बाहर निकालने का सौदा कर रहे है | सौदा अब तक पटा नहीं है क्योंकि भुइयाँ का भरोसा अभी भी टंगिया पर कायम है |||| ( चित्र : जोहन जोर्गिंसों गूगल साभार )
कथ्य,शिल्पऔर अंतर्निहित सन्देश तीनों ही दृष्टि से अकिंचन ,जीवित फिर भी त्रणवत