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Showing posts from February, 2013

जंगल राज

जंगल राज़ साहेब  की नज़र भुइयाँ पर थी .. पर एक दिन उसका बाप हिरसा टंगिया लेकर दौड़ पड़ा.. साहेब मौके की ताक में बैठ गया  | मौका उस दिन मिला जब विज्जू लकड़ी चुराकर शहर ले जाते पकड़ा गया | साहेब ने कहा विज्जू आज चुंगी नहीं गवाही लगेगी | लकड़ी भी थी गवाही भी थी और मुजरिम भी था | हिरसा का चालान कट गया और वो पिछले ६ महीने से बड़े घर का मेहमान है | साहेब ६ महीने से भुइयाँ के साथ उसे बाहर निकालने का सौदा कर रहे है | सौदा  अब तक पटा नहीं है क्योंकि भुइयाँ का भरोसा अभी भी टंगिया पर कायम  है ||||  ( चित्र : जोहन जोर्गिंसों गूगल साभार )

झुर्रियो वाली परी

सूक्ष्म कथा : झुर्रियो वाली परी ******************************** जिस बरस फसल में पाला लगा उसी बरस शहर में मेला लगा | मन रखने को बाप बच्चो को लेकर मेला चला तो गया लेकिन हर मोड़ पर बच्चे मचल जाते और बाप खिसिया कर रह जाता | मेले से लौटकर बच्चे बुक्का फाड़ कर रोये | अगले दिन डोकरिया ने कहा “ चलो रे सब जन मेला .... ” और लौटकर आयी तो चमकने वाले फुंदने ,महकने वाला सुरमा ,बोलने वाली गुड़िया ...और जाने क्या क्या संग आया  ...?? मौड़ा  मौड़ी...पटेहरा वाली ,बैसा वाली , उढ़री भौजी सभी के लिए कुछ ना कुछ  .... कुर्मियाने  में जैसे झुर्रियों वाली सयानी परी उतर आयी थी ..... गौरा वाली का माथा ठनका तो दौड़कर मुडहर की पेटी को खोल कर देखा और सन्न रह गयी | लाल आँखे और फड़कते नथुने लिए वो डोकरी के सामने पहुँची | डोकरी हाथ नचाते हुए बोली .. “ चल रहन दे ...अब मेरी आँख के इलाज के ही तो पैसे थे ... अपने बच्चो को रोता देखने से तो अच्छा है कि उनकी हँसी ही सुनती रहूँ .. ” आँगन में उस वक्त झुर्रियो वाली परी के चारों ओर  हँसी खुशी का मेला लगा हुआ था |||| (चित्र : गूगल साभार )

बडो का खेल

सूक्ष्म कथा : बडो का खेल  ********************** हुड़दंग की आवाज़ सुनकर ,मै दौड़कर वहाँ पहुँचा | देखा तो दंग रह गया | मैदान में रोज हिलमिल कर खेलने वाले बच्चे आज दंगे पर उतारू थे | कुछ कह रहे थे कि यहाँ पहले से क्रिकेट खेलते आयें है इसलिये यहाँ क्रिकेट ही होगा| कुछ का कहना था वे पहले आयें है और इसलिये यहाँ हॉकी खेलेगें | “ इतना बड़ा मैदान है तुम लोग एक - एक छोर पर दोनों खेल खेल सकते हो |” मैंने समझाना चाहा | “अंकल आप हम लोगों के बीच में मत पडो....” कहकर उन्होंने मुझे धकिया दिया | गाली गुफ्तार के बीच किसी को किसी का बल्ला छू गया ,तो किसी की हॉकी चल गयी | और देखते देखते फूल से चेहरों पर खून की लकीरे खिच गयी | “नालायक तू यहाँ क्यों आया था ...”अपने लहुलुहान बच्चे को उठाते हुए मै रो पड़ा | “ पापा ...सॉरी...आज हम बच्चों ने गलती से तय किया कि चलो बडो का खेल खेल कर देखते हैं ...|” ...और एक कराह के साथ उसने आँख मूँद ली ...| घर में पत्नी ने बताया कि बच्चे आज सुबह से ही टीवी मे भोजशाला वाला एपिसोड देख रहे थे |||| ( चित्र :  सत्या नारायण ..गूगल से साभार )

schizophrenia

सीजोफ्रेनिक प्रेमकहानी  इस कहानी में , कोई हनी बनी नहीं है , कोई पम्पकिन भी नहीं है | बस एक डोर है वो भी अनसुलझी हुई | डोर के एक सिरे पर , अगली बेंच पर एक लडकी है ,पोलका डॉट का स्कार्फ पहने | दूसरे सिरे पर , पिछली बेंच पर एक लड़का है ,बंद गले का फुलोवर पहने हुए | बीच में गुत्थी है बुरी तरह उलझी हुई | कि  क्यों लड़की दो दाँतों के बीच से हँसती हुई,  बात बेबात बार बार पीछे पलटकर देखती है ? और क्यों इसके बाद लड़के के लिए पोलका डॉट झिलमिल सितारों में बदल जाते हैं | गुत्थी सुलझती कि उसके पहले , गुबार का गुब्बारा उठकर सितारों पर छा जाता है | बाप की बीमारी लड़के को कालेज की बेंच से दुकान के काउंटर खीच ले जाती है |... कई सालो बाद... लड़के को एक तस्वीर मिलती है जिसमे लड़की पोलका डॉट वाला स्कार्फ पहने हुए है | लड़का काउंटर के सामने, दीवार पर पलट कर उस तस्वीर को टांग देता है | और इंतज़ार करता है कि कब लड़की तस्वीर से निकलेगी और पलट कर देखेगी | कहते है कि लड़के का इंतज़ार अब भी जारी है |||