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लघुकथायें..( हस्तक्षेप ./ बददुआ./ भेड़िया. भगत सिह का भूत पंडिताइन का सपना )


छोटे परदे  में भेड़िया
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                                          छोटे परदे में भेड़िया

12 बाइ 10 के उस घर में नन्ही  शिकार अपने 19 साल के अंकल शिकारी के साथ अकेली थी  |
दोनों के बीच एक पवित्र समझा जाने वाला रिश्ता था |
 मम्मी पापा शिफ्ट पर जा चुके थे |
शैतानी मत करना वरना  वहाँ से भेड़िया निकल आयेगा
 नन्ही  शिकार को डराने की गरज से माँ ने टीवी को दिखाते हुए  कहा था |
नन्ही  शिकार गुड़िया के साथ खेल रही थी ,शिकारी  प्रमेय हल कर रहा  था |
दीवाल घड़ी सुबह  के १०  बजा रही थी|
टीवी चालू था .>>>>>>>>
जिसके किसी चेनल पर एक अप्सरा ,ब्रा पॅंटी में अपनी देह की नुमाइश के साथ
फूहड़ता से त्वचा की सुंदरता का रहस्य बता रही थी
भेड़िया जागने लगा था|
उसकी पुतलियाँ फेलने लगी थीं |
दूसरे चैनल में एक एक्स रेटेड अंडरवेर का विज्ञापन था
जिसमे  लगभग नग्न  एक युगल बौछार के नीचे अठखेलियाँ कर रहा था
भेड़िए के खून की दौड़ तेज़ हो रही थी|
 उसके नथुने फड़क रहे थे |
तीसरे किसी  ज़ियोग्राफ़िक चैनल  पर केरेबियन बीच पर मस्ती भरे लोग धूप स्नान करते हुए जलक्रीड़ा कर रहे थे |
भेड़िए  की नसों में तनाव फैल रहा था |
उसकी कानों की घंटियाँ झनझना रही थीं|
चौथे चैनल पर एक कमसिन अपने उरोज को उघाड़कर उनमें काँटा चुभो रही थी|
पाँचवे  चैनल पर एक दूसरी हसीना जांघों की गोलाई  दिखाकर आरपार गा रही थी|
अब भेड़िया सिर पटक रहा था|
 उसके पंजे मिट्टी खुरच रहे थे|
आगे दर्जन भर चैनलों में
मरडर, हवस, जिस्म, फन और ज़हर की क्लीपिंग्स थी
निरंतर मादक, उत्तेजक, झागदार
भेड़िया अब बेक़ाबू हो रहा था|
वह धीरे धीरे नन्ही शिकार की तरफ़ खिसक रहा था|
टीवी  पर अब केबल वाले की xxxx फिल्म चल रही थी
जिसमे आटे की तरह सफेद चमड़ीयाँ आपस में गुँथी हुई वीभत्स यौनाचार में लिप्त थीं|
भेड़िये ने अपने शिकार को दबोच लिया था.|
उसके दाँत बोटियाँ नोच रहे थे|
नन्ही शिकार  का चित्कार टीवी  के  कामातिरेक  सित्कार में डूब चुका था|
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रात  12 बाइ 10 के उसी घर में
मॉडल कम रिपोर्टर बढ़ती नग्नता के ख़तरे को विज़ुआलाइज़ कर रहीथीं|
एक दाढ़ी वाला  चश्मिश अबूझ शब्दावली  में
अभिव्यक्ति की आज़ादी समझा रहा था|
कुछ कॉस्मोपोलिटन इनटिलेक्चुयल्स बदहवास मुद्रा में बाल यौन शोषण बडबडा रहे थे|
फर्श पर खून के धब्बे साफ किये जा चुके थे|
नन्ही शिकार कोने में गुमसुम गुड़िया के साथ दुबकी थी |
शिकारी  प्रमेय के भीतर से उसे रह रह कर घूर रहा था
मम्मी पापा टीवी देखते हुए सो चुके थे |
दीवार घड़ी रात के 11 बजा रही थी|


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(अ)हस्तक्षेप ...

(हस्तक्षेप करने से बचा जा सकता है लेकिन शर्त है बस मौत )
ट्रेन छुक छुक कर चल रही थी और उसकी नब्ज़ धुक धुक कर |
चादर में से धीरे से सिर निकालकर वो सामने की बर्थ को देखता और चादर में सिर वापस घुसेड़ लेता |
वो इस समय आदमी नहीं एक कछुआ था अपनी खोल में अंदर बाहर होता हुआ  |
कौन पंगा ले ?
मुझे क्या गरज पड़ी है ?
एक मै ही थोड़े ना हूँ बोलने को ?
जैसे बहुत से रेडीमेड प्रतिप्रश्न उसके पास थे जिन्हें वो अपने भीतर से उठने वाले हर प्रश्न के ऊपर चिपका रहा था |
दरवाज़ा उसके सामने ही खोला गया था और कम्पार्टमेंट  के भीतर सबसे पहले वो ही घुसा था मगर जैसे ही उसने सामने की बर्थ पर देखा तो लगा कोई चादर ओढ़कर लेटा है | बंद ट्रेन में कोई कैसे चढ़कर सो सकता है .??..
उसे खटका हुआ किन्तु उसने सवाल को आदतन टाल दिया | लेकिन बीच बीच में चोर निगाहों से वो सामने की बर्थ को देख लेता |
जहाँ कोई हलचल नहीं थी |साँस चलने पर हिलती छाती नहीं थी |कोई करवट ,कोई खाँसी खर्राटा नहीं | तो कोई मुर्दा लेटा है यहाँ या किसी ने आटे की बोरी को चादर ओढा दी है ?हो सकता है कोई बड़ा सा पुतला हो जिसे कोई साथ लेकर चल रहा हो ?
एक लंबी से उफ्फ्फ्फ्फ्फ़ के साथ उसने सिर को झटका दिया ..
एक मै ही अकेला थोड़े ना हूँ डब्बे में ...
दूसरे भी तो है सोचने और करने को...
८ घंटे कट चुके हैं ६ और कट जायेंगे ..फिर अपने घर ..
उसने सोचा और सोने की कोशिश में आँखे मीच ली |
लेकिन आँख मिचते ही फ्लेश बैक चालू हो गया ....
माँ बाबूजी कहते थे स्कूल से सीधे घर आओ ..उसे शरीफ होना सिखाया गया था  ... शरीफ याने सर झुकाये दुहने को तैयार एक गाय ......एक दिन बढ़ी फीस के विरोध में रैली में शामिल हो गया तो बाबूजी बिफर पड़े ...
फीस देने के लिए मै मरा नहीं हूँ अभी ..नेतागिरी में नहीं पढ़ाई में ध्यान दो |
अभी पिछले हफ्ते सामने की खुली नाली के मसले को लेकर पार्षद के यहाँ चले जाने से घर लौटने में घंटा भर लेट हो गया तो पत्नी उलाहना देने लगी ..मोहल्ले में एक तुम्ही हो जिसे खुली नाली दिखती है ....नौकरी छोड़ चुनाव लड़ लो ...
उसने फिर एक लंबी उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ के साथ करवट ली ..
और फिर सामने की बर्थ को देखा |
उसे लगा कि वो जाकर चादर हटाकर देखे ,टटोल तो ले ही  कि क्या है वहाँ मुर्दा शांति से भरा ...?
पर कोई हुआ तो वो क्या जवाब देगा? 
ये सोचकर  वो ऐसा नहीं कर सका .. एक क्षण उसने बगल के व्यक्ति से इस बारे में बात करनी चाही फिर ये सोचकर रुक गया कि बगल वाला  जाने क्या सोचेगा .?..
अचानक उसे लगा कि जैसे घड़ी की टिक टिक सी  आवाज़ को आ रही है ...तो क्या किसी ने इसमें.....
ओह्ह्ह क्या उलूल जुलूल विचार है ...और वो अपने सोचे पर मुस्कुरा कर रह गया  ..
ट्रेन अपनी पूरी रफ़्तार पकड़ चुकी थी और उसके ख्याल अब धीमे पड़ते जा रहे थे |
उसे लगा अब वो नीद की गोद में धीरे धीरे झूल रहा है ....
एकाएक उसके एक धमाके की आवाज़ सुनी और उसके बाद ......
कम्पार्टमेंट के साथ वो भी एक लहुलुहान लोथड़े में बदल चुका था ....
वहाँ अब कोई नहीं बचा था ...जो हस्तक्षेप करता ....
 ( चित्र : गूगल साभार )
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बददुआ..( एक लाइव स्टोरी )

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सब्जी की  रेहड़ी लगाती हूँ |

१५ बरस से ऊपर हुए मरद दारु पीकर झगड़ा और निकल गया |
कोई बोला पटरी तरफ दिखा था ,कोई बोला बम्बई में दिखा ...
नासपीटे का कितना रास्ता देखती ... रास्ते पर सब्जी लेकर बैठ गयी |
छोटू तब गोद में था | उसके ऊपर मंझली फिर बड़कू..|
४ बरस हुए मंझली को अंडे वाले ने रख लिया ...ऊपर वाला सलामत रखे उनको |
पिछले बरस बड़कू को बिज़ली का झटका लग गया ...बच तो गया पर हगना मूतना सब खाट पर ही ...जब तक हूँ ..देख रही हूँ ..आगे का .......( कुछ टूटी सुबकियाँ )
छोटू ही अब जिंदगी थी |
उल्टे पाँव में चोट लगने से सेप्टिक हो गया तो आपरेशन हुआ था | जूते में मोटा तल्ला लगाता था ...कालेज जाने लगा था और सेठ के यहाँ काम भी देखता था ..|
कहता था ...थानेदारी में बैठेगा ...और मुझे पक्की दूकान खरीद कर देगा ...( एक सुबुकता पाज़ )
रात घर नहीं लौटा तो सोचा सेठ के यहाँ रुकना पड़ गया होगा ...|
सुबह सब कह रहे थे इतवारी बाज़ार के पास रात बम फटा है ...बीसियों लोग उड़ गये हैं | छोटू उसी रास्ते तो लौटता था |..खटका हुआ तो सेठ के यहाँ पहुँची फिर थाने फिर मुरदाघर....उस जले माँस के ढेर में मै अपने कलेजे के टुकड़े को कैसे पहचानती ..( एक दहाड़ जैसे बाँध टूटा हो ..) एक जले पाँव में तल्ले लगा जूता पड़ा था वहाँ...वो मेरा छोटू था ...( एक टूटा हुआ विलाप ..)
तुम फोटू वाले हो ना ...
मेरी फोटू के साथ ये छापना कि मेरे को नहीं मालूम कि उन लोगो को क्या चाहिये ...किन्तु ये सब करके वे स्वर्ग भी पा जायें तो भी उसमे उसमे उनके बच्चे सुखी नहीं रहेंगे ....
लिखना एक जिंदा मरी हुई माँ की बददुआ है उनको ....
(एक अनवरत विलाप जिसे केमरे ने आगे कैद नहीं किया ....)
{चित्र साभार गूगल}

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भगत सिंह का भूत 


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बिस्तर से उतरने के पहले ही आज के शेड्यूल उन्हें रट गया था |
आज १० बजे भगत सिंह की मूर्ती पर  माल्यार्पण करना है १२ बजे युवा कार्यशाला का उदघाटन करना है शाम ७ बजे शहीद स्मृति सभा की अध्यक्षता करनी है ....
पर सुबह से अपने १८   वा बसंत पार कर रही मिठ्ठू  के साथ उनका युद्ध भी चालू हो गया था | मिठ्ठू सेमेस्टर खत्म कर  छुट्टियाँ मनाने घर आयी थी |
९ बजे जैसे ही नौकर को  गलत क्रीज के लिए गाली देने लगे |मिठ्ठू ने बीच में पड़ते हुए कहा पापा अभी १२ साल का है वो वैसे भी चाइल्ड लेबर मना है  .. आपने उसे किताबों की जगह कपडे पकड़ा दिये हैं  |  ” 
और वे बस  तिलमिलाकर कर रह गये..|
शाम इम्पोर्टेड  घड़ी की चोरी का कोहराम मच गया | अंत में मिठ्ठू ने खुलासा किया कि घड़ी उसने छुपायी है क्योंकि वो नहीं चाहती कि पापा एक विदेशी घड़ी पहनकर शहीदों की श्रद्धांजलि का अपमान करें ...
इस दफे उन्होंने आँखे तरेरकर मिठ्ठू को देखा और बुदबुदाते हुए निकल गये ..|
रात्रि भोज पर जब वे  ठेका कम्पनी के एजेंट के साथ कमीशन की चर्चा कर रहे थे बदहवास बीबी ने एक पर्चा उनके हाथ में थमाया ... जिसमे लिखा था ..
पापा में हास्टल वापस जा रही हूँ ....इस गंदी हवा में मै साँस नहीं ले सकती ....और आप मुझे खर्चा  मत भेजना ...मैंने इसके लिए पार्ट टाइम जाब की बात कर ली है .. आपकी मिठ्ठू...”..
तो भगत सिह का भूत पड़ौसी के बदले  ...हमारे बच्चे में ही सवार हो गया....कहते हुए उन्होंने हिकारत की नज़र बारी बारी से पर्चे और बीबी डाली |
फिर मुस्कुराते हुए  एजेंट के साथ चर्चा में जुट गये...उन्हें भगत सिह के भूत के ज़ल्दी उतर जाने का पक्का भरोसा था  |||

पंडिताइन का सपना
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पंडित जी ओसारी में जजमान की जन्म पत्री में आँख गड़ाये रहते | उधर अन्दर पंडिताइन टीवी पर |
४ दिनों से लगातार टीवी पर किन्ही साधू बाबा का सपना सोना उगल रहा था | देखते देखते पंडिताइन को झपकी लगी और उन्होंने भी सपने में देखा कि उनकी खटमल कुपित खटिया के नीचे सोने का हांडा दबा हुआ है | सपने से जागी तो लपककर पंडित जी की छाती पर सवार हो गयीं और बोली .. “ सुनो जी अब हमारे दिन भी बहुर जायेंगे ..दौड़कर गैंती फावड़ा ले आओ ..कोई और सपना देख ले इसके पहले ही हांडा खोद कर निकाल लेते है |”
पंडित जी लाख समझाया लेकिन पंडिताइन की जन्म पत्री में में समझ का ग्रह वक्री था | सो हराकर पुश्तैनी चांदी का लोटा गिरवी रखकर गेंती फावड़ा खरीदा और भूमि पूजन कर उत्खनन में जुट गये | रात बीती शुकवा ऊग आया दोनों थककर चूर हो गये | कमर बराबर गड्डा खुद गया लेकिन हांडा तो दूर हँड़िया भी ना दिखी |
...सोना मिले ना मिले अब सोने को ज़रूर मिलेगा, कहते हुये पंडित जी पंडिताइन को खुदाई करते हुये छोड़कर औसारी में जा सो रहे |उधर सूरज देव चढ़े ,इधर पंडिताइन की भयानक चीख ने पंडित जी की नींद उड़ा दी | दौड़कर देखा तो गड्डे में कंकाल निकाल आया था और पंडिताइन थर थर काँपे जा रही थी |
चीख सुनकर पहले पड़ौसी आये और फिर कानाफूसी सुनकर दोपहर तक कोतवाल | पंडित जी ने लाख समझाया कि यह मकान उन्होंने २० बरस पहले जजमान से खरीदा था और कंकाल के बारे में उन्हें कुछ नहीं पता | लेकिन कोतवाल की जन्मपत्री में भी समझ का योग बहुत कठिन था |और वह योग तब बना जब पंडिताइन के सोने के बाले उतर गये |
शाम होने को आयी है पंडिताइन अभी भी टीवी से चिपकी छूंछे कान को छू छू कर सोने के खजाने वाला स्कूप देख रही है | शायद वही से कुछ सोना इधर भी आ जाये |||

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