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Showing posts from September, 2018

लप्रेक :टुरा और टुरी

टुरा और टुरी : लप्रेक ***************** १)पूर्वार्ध ^^^^^^^^ कहते है जमीन और आसमान सिर्फ मिलते हुए दिखते हैं ,हक़ीक़त में मिलते कभी नही । तो एक ऐसी ही जगह जहां ज़मीन और आसमान मिलते दिख रहे थे एक टुरी खड़ी थी । उसके जूड़े में फूल था । उसकी अँजुरी में फूल थे उसकी साँसों में फूल थे उसकी आँखों मे फूल थे वो उस तरफ देख रही थी जिस तरफ से एक टुरा आता दिख रहा था । दिख रहा था ...बस ..आ नही रहा था । टुरा अचानक दूसरी गली में मुड़ गया । इस स्टोर से उस स्टोर इस बिल्डिंग से उस बिल्डिंग उसकी जेब मे एक लंबी लिस्ट थी लिस्ट बड़ी मंहगी थी और वह बेहद जल्दी में था । टुरी खड़े खड़े ऊँघने लगी टुरा भागते भागते बहुत दूर निकल गया । २)उत्तरार्ध ^^^^^^^^^^^^ टुरा बड़ा होकर 'ही' बना । 'ही' बड़ा आदमी बना । टुरी बड़ी होकर 'शी' बनी । 'शी' लेखिका  बनी । 'शी'को अब भी विश्वास था कि ज़मीन और आसमान का मिलना स्वप्न नही सच है । सो उसने टिकट कटाया और मुम्बई जा पहुंची । 'ही' मिला जरूर लेकिन  लंबी गाड़ी ऊंचे बंगले और मोटे  बैंक बैलेंस के नीचे दबकर उसका चेहरा वीभत्स हो

14 सितम्बर :हिंदी के कर्म कांड से आगे सोचना होगा

14 सितम्बर हिंदी के कर्म  कांड का सरकारी  दिन है । कहते हैं जब कर्म से फल ना मिले तो कांड अवश्य करें । सो आज एक निर्माणी में हिंदी पखवाड़े के दौरान मुख्य अतीथि होकर मैंने भी हिंदी कर्म का कांड किया । मैंने बात आमंत्रण पत्र से शुरू की । आमंत्रण पत्र में राजभाषा अधिकारी के हस्ताक्षर अंग्रेजी में थे । हिंदी की चिंदी लहराने वाले हम में से कितने अपने हस्ताक्षर हिंदी में करते हैं । कार्यालय की नाम पट्टिका और बंगले के गेट  पर टँगा  शिलापट्ट हिंदी में खुदवाते हैं । हम तो अपने कुत्ते का नाम तक हिंदी या मादरी जुबान में नही रखते । हद तो तब हो गयी है जब मेरा कवि मित्र आपसी बातचीत में अपने बिल्डर  को श्वान और उसकी महिला मित्र को मादा श्वान कहकर संबोधित करने लगा । मैंने टोका सीधे सीधे *कुत्ता* क्यो नही बोलते तो कहने लगा *आदरणीय ...जिह्वा का स्वाद बिगड़ जाता है* तो हम में कोई स्वाद तो कोई सम्मान बिगड़ने के डर से जीवित हिंदी से दूर जाते हुए या तो राजभाषा टाइप की बनावटी हिंदी के मुँह में जा घुसा है या अंग्रेजी के पिछवाड़े में । हिंदी का बंटाढार जितना विलायती टट्टुओं ने किया उससे कम तत्सम पिट्ठुओं न