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लप्रेक :टुरा और टुरी

टुरा और टुरी : लप्रेक
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१)पूर्वार्ध
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कहते है जमीन और आसमान सिर्फ मिलते हुए दिखते हैं ,हक़ीक़त में मिलते कभी नही ।
तो एक ऐसी ही जगह जहां ज़मीन और आसमान मिलते दिख रहे थे एक टुरी खड़ी थी ।
उसके जूड़े में फूल था ।
उसकी अँजुरी में फूल थे
उसकी साँसों में फूल थे
उसकी आँखों मे फूल थे
वो उस तरफ देख रही थी जिस तरफ से एक टुरा आता दिख रहा था ।
दिख रहा था ...बस ..आ नही रहा था ।
टुरा अचानक दूसरी गली में मुड़ गया ।
इस स्टोर से उस स्टोर
इस बिल्डिंग से उस बिल्डिंग
उसकी जेब मे एक लंबी लिस्ट थी
लिस्ट बड़ी मंहगी थी
और वह बेहद जल्दी में था ।
टुरी खड़े खड़े ऊँघने लगी
टुरा भागते भागते बहुत दूर निकल गया ।
२)उत्तरार्ध
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टुरा बड़ा होकर 'ही' बना । 'ही' बड़ा आदमी बना ।
टुरी बड़ी होकर 'शी' बनी । 'शी' लेखिका  बनी ।
'शी'को अब भी विश्वास था कि ज़मीन और आसमान का मिलना स्वप्न नही सच है । सो उसने टिकट कटाया और मुम्बई जा पहुंची ।
'ही' मिला जरूर लेकिन  लंबी गाड़ी ऊंचे बंगले और मोटे  बैंक बैलेंस के नीचे दबकर उसका चेहरा वीभत्स हो चुका था ।
'शी' अपने फूल समेटकर लौट आयी और उसने किताब लिखी " एक निर्वासित स्वप्न '" ।
इसे उसने 'ही' को ही  समर्पित किया ।
'ही' की कम्पनी ने इसे रंगीन चिकने ग्लेजी कागज़ पर मकबूल साहब के चित्रों के साथ छापा और तगड़ी कमाई की ।
 'शी' ने मिली रायल्टी से एक घर बनाया और नाम रखा 'क्षितिज'
३)उपसंहार
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'आसमान यदि  रोता तो कबका बूढा हो गया होता '
'शी' ने डायरी में उस तारीख को लिखा जिस दिन 'ही' अपने कारोबार के साथ सात समंदर पार जाकर एन आर आई हो गया ।
'शी' के क्षितिज में 'बचपन बचाओ' का संरक्षण गृह चलता है ।
'शी' को कभी केदारनाथ के पहाड़ों में देखा गया तो कभी टी टी एस साइको क्लिनिक में ।
'शी' की डायरी में  अंतिम पंक्ति ये लिखी है -
"ज़मीन और आसमान एक जगह मिलते ज़रूर हैं ..बस वहाँ पहुंचने  से पहले हमारा सफर ही थक जाता है "
**हनुमन्त किशोर **

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