[06/08, 12:20 PM] hanumantkiahorsharma: लघु कथा : बेडटच ___________________________ झन्नाटे दार तमाचे के साथ गूंजा "get out .. bastard" .. इसके साथ भड़ाक से दरवाज़ा बंद हुआ और उसकी की आँखों के आगे अँधेरा छा गया | कुछ मिनट बाद चेतना लौटी तो रील घूमनी शुरू हुई | आज स्कूल जरा देर से छूटा था उस पर बुरी तरह से गर्मी | बच्चे भुने आलू की तरह दिख रहे थे | स्कूल से रिक्शे में बच्चो को बिठाकर वो भवानी की जय बोलकर चल दिया | पसीने से पेंट आधी भीग चुकी थी कि कोहिनूर बिल्डिंग आ गयी | जहाँ वो रानी बिटिया को छोड़ता है | रानी बिटिया को देखता तो उसे गाँव में छोड़ी अपनी नातिन तरोई याद आने लगती | दुबले पतले हाथ पाँव सुकुमार काया जैसे छानी चढ़ी तरोई ,,जब वह नातिन को तरोई कहकर पुकारता तो वो मुँह बिचकाकर कहती.... "तरोई गयी पेट में....मै शीला हूँ " | आज जब रानी बिटिया भारी बस्ता उठाकर थके कदमो से आगे बढ़ी तो उसे जाने क्या सूझी और वो बोल उठा 'रुको....' | गेट पर एक नज़र दौड़ाई सिक्योरिटी गार्ड नहीं था | बाकी बच्चो को रिक्शे पर छोड़ वो तेज़ी से रानी बिटिया की तरफ लपका और उसके कंधे
कथ्य,शिल्पऔर अंतर्निहित सन्देश तीनों ही दृष्टि से अकिंचन ,जीवित फिर भी त्रणवत