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सांडे का तेल : saande ka tel

कथा : सांडे का तेल
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वो कर्रा मजमेबाज़ था |
जिला आफिस के सामने ही  दस बजते उसकी डुग्गी बजती और देखते देखते बड़ा सा मजमा जम जाता |
हरीराम ने बताया था वो मोड़ के कबाड़ी से शीशी लेकर उसमे जला इंजन आइल भर लेता था |
 पहलवान बाबा की फोटो के आगे सजी उनकी कतार पर मानो पहलवान बाबा की कसरती देह आई एस आई का ठप्पा मार देती |
मजमे का चक्कर मारते हुए वो कहता " भाई जान ..बाबू जी ..साहब जी .. ये चमत्कारी जड़ी बूटी से बना सांडे का तेल बस  दिन में  दो बार ...नया पुराना कोई भी मर्ज़ हो तीन हफ्ते में छू मंतर हो जायेगा . ..खूंटा खम्भा हो जाएगा .रूप-रंग चंगा हो जाएगा ... एक बार आजमा कर देखो ..फायदा  नहीं तो आपकी जूती मेरा सर "
दो तीन  चक्कर लगाकर वो बीस-बीस रूपये में लोगो को शीशी चेंपकर  देखते-देखते खुद छू मंतर हो जाता |
मकुना पनवाड़ी उसके हर मजमे में भीड़ से निकलकर जोर से कहता 'मुझे दो शीशी दो  ..एक हफ्ते में इस तेल के इस्तेमाल के बाद  अब बीबी मायके जाने का नाम ही नहीं लेती |'
हरिराम ने  बताता था कि मकुना को इसके लिए रोज़ बीस रूपये मिलते थे |
मेरा सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था तो कभीतेल का ख्याल नहीं आया फिर एक दिन जब तबादला हुआ ..तो शहर छूटा और मजमे की याद भी छूट गयी  |
१० साल बाद तरक्की और तबादले पर मेरी शहर में दुबारा आमद हुई |
एक-दो हफ्ते गुजर गये |
मैंने महसूस किया अब उस जगह मज़मा नहीं जमता था |
फिर एक दिन मै पास ही की  चाय की दुकान पर खड़ा था कि किसी ने चाय बढ़ाते हुए कहा
"तिवारी बाबू जी नमस्कार ..." 
देखा तो वही मजमेबाज था लेकिन अब  बीमार और कमज़ोर |
मैंने चुहल करते हुए कहा"... यार तुम्हारा मजमा नहीं लगता ..तुम्हारे तेल की जरूरत थी ...बीबी मायके जाने की बात करती है  ?"
"काहे का तेल काहे का मजमा बाबू साहब,अब तो हम सब बेरोजगार से हो गये है ..अब इसी  दुकान में काम करता हूँ  "कहते हुए वो दूसरे ग्राहक की तरफ मुड़ गया |
चाय सुडकते हुए मैं अखबार पलटने लगा |
अखबार के हर पन्ने पर लाखों की भीड़ को अपने लटके झटके से लुभाते हुए आधी बांह के कुर्ता धारी महानायक की तस्वीर थी ...
"ओह्ह तो अब सबके हिस्से के सांडे का तेल ये अकेले बेच रहे हैं "
 सोचते हुए मैंने चाय की लम्बी सुड़क भरी और मन ही मन मुस्कुराया लेकिन अगले ही पल सशंकित हो गया कि कहीं मुझे ऐसा सोचते हुए तो किसी ने नहीं देख लिया |
सुनते है चप्पे-चप्पे में हरिराम छुपे हुए हैं ||
||हनुमंत किशोर ||

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