कथा : और मुन्ना चला गया
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वे चार थे |
सुखी थे या नहीं ?
कहा नही जा सकता |
लेकिन इसके पहले बाप बात-बात पर भड़क नहीं उठता था ,मुन्नी हर वक्त रोते नही रहती थी और माँ बेसुध नहीं हुई थी |
माँ-बाप सूरज के सफ़र पर निकलने के बहुत पहले अपनी खाली बोरियां पीठ पर धर कर निकल पड़ते |
पीछे खोली में मुन्ना और मुन्नी बचते |
उस समय दो साल का मुन्ना छ: साल की मुन्नी का हौसला होता था और मुन्नी उसकी माँ हो जाती थी |
पन्नी बीनकर जब माँ-बाप लौटते तो माँ खाना बनाती और चारो साथ बैठकर खाते | इस बीच मुन्नी , मुन्ने की ढेर सी चुगली सुनाती और और हंसती रहती |
उस दिन पन्नी बीनकर लौटते समय माँ-बाप ने चौराहे पर चर्चा सुनी कि सरकार की नोट बंदी के बाद लोग कचरे में पाँच सौ और हज़ार के नोट फेंक रहे हैं |
"हमें तो एक भी नही मिला "
'हो सकता है पहले ही किसी और को मिल गया हो '
"कल से हम और जल्दी निकलेंगे ...और हाँ कल से मुन्नी भी काम पर साथ में निकलेगी क्या पता उसे ही कुछ मिल जाये "
'और मुन्ना ..?'
"मुन्ने को तू गोद में अच्छे से ढाक कर रख लेना ..बस एक-दो दिन की ही तो बात है ..रूपये मिलते ही अपने भी अच्छे दिन आ जायेंगे "
तो पाठको ..
तय योजना के अनुसार अगली सुबह भारी ठंड में जब सूरज पूरब में रजाई में दुबका था वे चारो खोली से बाहर निकले |
तीन बोरिया तीन दिशाओं में बंट गयी |
एक-दो-तीन-चार ...
दिन गुजरते रहे |
तीनो के नसीब में सिर्फ पन्निया थी | तीनो का मानना था कि कचरे पर फेंके गये रूपये उनसे पहले ही कोई और उठा लेता है , लिहाजा वे अपना समय रोज ब रोज और पहले करते गये |
चौथे दिन मुन्ने की देह तपने लगी |
पांचवे दिन माँ ने पास की दवा दुकान से खरीदकर नीली पन्नी की गोली मुन्ने को खिलाई लेकिन दसवे दिन जब लगा कि मुन्ना हाथ से निकल जायेगा तो उसे खैराती अस्पताल में भर्ती कराया गया , जहाँ डाक्टर ने शीत लगना बताया और निमोनिया घोषित कर दिया |
तीन-चार दिन संघर्ष करने के बाद मुन्ने की ताक़त और उसके परिवार की किस्मत जबाब दे गयी |
और जैसा फिर हर कहानी में होता है
इस कहानी में भी मुन्ना मर गया |
लेकिन यह कहानी यहाँ से शुरू होती है |
मुन्ने के गुजर जाने के सदमे से बाप अक्सर बेबात भड़क उठता ..मुन्नी बेबात रोती रहती और माँ वक्त-बेवक्त बेसुध हो जाती |
फिर एक दिन माँ- बाप ने चौराहे पर चर्चा सुनी की गरीबो के खाते में अचानक रकम आ रही है |
तो दोनों जल्दी-जल्दी दोपहर तक काम निपटाकर अपने जन-धन की पुस्तिका के साथ बैंक के आगे खड़े होने लगे |
हफ्ते -दो हफ्ते बीत गये दो-एक बारी आने पर खाता चेक हुआ और उसमे रकम जैसी थी वैसी ही रही |
लौटकर माँ -बाप कच्ची पीकर यह बड़बड़ाते हुए लुढ़क जाते कि मुन्ना चला गया ..|
इधर मुन्नी बड़ी तेज़ी से बड़ी होने लगी थी ,अब काम और माँ-बाप के साथ बाहर वालों की नजरों को भी उसे सम्भालना होता था |
आज उसने सुना कि डिजिटल पेमेंट करने वालों की करोड़ो की लाटरी निकलेगी |
रात उसने सपना देखा कि उनकी करोड़ो की लाटरी खुल गयी है और उनके अच्छे दिन आ गये हैं |
सुबह कचरा बीनते हुए एक ही बात दिमाग़ में चक्कर काटती रही कि डिजिटल पेमेंट कैसे करते हैं ?
क्या उसे ,आपमें से कोई बता सकता है कि डिजिटल पेमेंट कैसे करते हैं ..
सुखी थे या नहीं ?
कहा नही जा सकता |
लेकिन इसके पहले बाप बात-बात पर भड़क नहीं उठता था ,मुन्नी हर वक्त रोते नही रहती थी और माँ बेसुध नहीं हुई थी |
माँ-बाप सूरज के सफ़र पर निकलने के बहुत पहले अपनी खाली बोरियां पीठ पर धर कर निकल पड़ते |
पीछे खोली में मुन्ना और मुन्नी बचते |
उस समय दो साल का मुन्ना छ: साल की मुन्नी का हौसला होता था और मुन्नी उसकी माँ हो जाती थी |
पन्नी बीनकर जब माँ-बाप लौटते तो माँ खाना बनाती और चारो साथ बैठकर खाते | इस बीच मुन्नी , मुन्ने की ढेर सी चुगली सुनाती और और हंसती रहती |
उस दिन पन्नी बीनकर लौटते समय माँ-बाप ने चौराहे पर चर्चा सुनी कि सरकार की नोट बंदी के बाद लोग कचरे में पाँच सौ और हज़ार के नोट फेंक रहे हैं |
"हमें तो एक भी नही मिला "
'हो सकता है पहले ही किसी और को मिल गया हो '
"कल से हम और जल्दी निकलेंगे ...और हाँ कल से मुन्नी भी काम पर साथ में निकलेगी क्या पता उसे ही कुछ मिल जाये "
'और मुन्ना ..?'
"मुन्ने को तू गोद में अच्छे से ढाक कर रख लेना ..बस एक-दो दिन की ही तो बात है ..रूपये मिलते ही अपने भी अच्छे दिन आ जायेंगे "
तो पाठको ..
तय योजना के अनुसार अगली सुबह भारी ठंड में जब सूरज पूरब में रजाई में दुबका था वे चारो खोली से बाहर निकले |
तीन बोरिया तीन दिशाओं में बंट गयी |
एक-दो-तीन-चार ...
दिन गुजरते रहे |
तीनो के नसीब में सिर्फ पन्निया थी | तीनो का मानना था कि कचरे पर फेंके गये रूपये उनसे पहले ही कोई और उठा लेता है , लिहाजा वे अपना समय रोज ब रोज और पहले करते गये |
चौथे दिन मुन्ने की देह तपने लगी |
पांचवे दिन माँ ने पास की दवा दुकान से खरीदकर नीली पन्नी की गोली मुन्ने को खिलाई लेकिन दसवे दिन जब लगा कि मुन्ना हाथ से निकल जायेगा तो उसे खैराती अस्पताल में भर्ती कराया गया , जहाँ डाक्टर ने शीत लगना बताया और निमोनिया घोषित कर दिया |
तीन-चार दिन संघर्ष करने के बाद मुन्ने की ताक़त और उसके परिवार की किस्मत जबाब दे गयी |
और जैसा फिर हर कहानी में होता है
इस कहानी में भी मुन्ना मर गया |
लेकिन यह कहानी यहाँ से शुरू होती है |
मुन्ने के गुजर जाने के सदमे से बाप अक्सर बेबात भड़क उठता ..मुन्नी बेबात रोती रहती और माँ वक्त-बेवक्त बेसुध हो जाती |
फिर एक दिन माँ- बाप ने चौराहे पर चर्चा सुनी की गरीबो के खाते में अचानक रकम आ रही है |
तो दोनों जल्दी-जल्दी दोपहर तक काम निपटाकर अपने जन-धन की पुस्तिका के साथ बैंक के आगे खड़े होने लगे |
हफ्ते -दो हफ्ते बीत गये दो-एक बारी आने पर खाता चेक हुआ और उसमे रकम जैसी थी वैसी ही रही |
लौटकर माँ -बाप कच्ची पीकर यह बड़बड़ाते हुए लुढ़क जाते कि मुन्ना चला गया ..|
इधर मुन्नी बड़ी तेज़ी से बड़ी होने लगी थी ,अब काम और माँ-बाप के साथ बाहर वालों की नजरों को भी उसे सम्भालना होता था |
आज उसने सुना कि डिजिटल पेमेंट करने वालों की करोड़ो की लाटरी निकलेगी |
रात उसने सपना देखा कि उनकी करोड़ो की लाटरी खुल गयी है और उनके अच्छे दिन आ गये हैं |
सुबह कचरा बीनते हुए एक ही बात दिमाग़ में चक्कर काटती रही कि डिजिटल पेमेंट कैसे करते हैं ?
क्या उसे ,आपमें से कोई बता सकता है कि डिजिटल पेमेंट कैसे करते हैं ..
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