सूक्ष्म कथा : मुड़हा और क्लास
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नाम सोहन था लेकिन लोग मुड़हा कहकर बुलाते |
सर में खुजली रहने से हर दो महीने में अपना सर जो मुड़वा लेता |
मुड़हा उस दिन ख़ुशी से फूलकर फटते फटते बचा था जब उसे मालूम चला कि एक चाय पिलाने वाला प्रधानमंत्री हो गया | उस दिन से चाय के गिलास लाते ले जाते समय उसकी छाती तनिक तनी रहती | उसका होटल ‘ब्लू मून’ स्कूल से लगा था | जब वहां बच्चों को आते जाते देखता तो मन तो उसका भी होता कि गिलास और केतली को फेंके और बस्ता लेकर दौड़ लगा दे ..लेकिन अगले पल ही मन मार लेता कि बाप का रिक्शा इतना मंहगा सपना नहीं ढो सकता | उसे किसी ने नहीं बताया कि आठवी तक मुफ्त शिक्षा उसका मूल अधिकार है और उससे इस उम्र में काम लेना अपराध | लेकिन मुड़हा को पैदा करके जैसे उसका बाप भूल गया वैसे ही सरकार भी कानून को बनाकर भूल गयी |
आज सुबह होटल में स्कूल के नौकर जब चाय पीने आये तो उनकी बात से मुड़हा ने जाना कि आज प्रधानमंत्री बच्चों की बड़े पर्दे पर क्लास लेंगे वो भी ग्राउंड में | और तभी से मुड़हा का मन भी मचल उठा .. ‘आखिर वे भी कभी चाय पिलाते थे मै भी चाय पिलाता हूँ ..|’
मौका देखकर मुड़हा स्कूल की तरफ सटक लिया लेकिन स्कूल पहुंचा तो गेट बंद था और दरवाजे पर वर्दी वाले यमराज को देखकर बची खुची हिम्मत भी टूट गयी | लेकिन सपना मचल रहा था सो दीवार के किनारे किनारे चलने लगा | एक जगह उसे लगा कि यदि टपरे की टेक ली जाये तो दीवार के पार झाँका जा सकता है और किस्मत से टपरा आज बंद भी था |
तो मुड़हा ने टपरे की टेक लेकर दीवार के पार झाँका | प्रधानमंत्री मंत्र दे रहे थे ... “मेहनत करो,तकदीर बदलेगी” ..| उसने मन्त्र दुहराया ही था कि भद्दी सी गाली के साथ उसके पिछवाड़े पर सटाक से कुछ लगा | पलटकर देखा तो मालिक था जो माँ-बहन एक करके पूछ रहा था ..वहाँ काम तेरा बाप करेगा ??
मुड़हा अपने पिछवाड़े सहलाता हुआ होटल की तरफ भागा ... मन्त्र उसके दिलो दिमाग में अब भी गूँज रहा था .. ... “मेहनत करो,तकदीर बदलेगी” .. ... “मेहनत करो,तकदीर बदलेगी” ..||||
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नाम सोहन था लेकिन लोग मुड़हा कहकर बुलाते |
सर में खुजली रहने से हर दो महीने में अपना सर जो मुड़वा लेता |
मुड़हा उस दिन ख़ुशी से फूलकर फटते फटते बचा था जब उसे मालूम चला कि एक चाय पिलाने वाला प्रधानमंत्री हो गया | उस दिन से चाय के गिलास लाते ले जाते समय उसकी छाती तनिक तनी रहती | उसका होटल ‘ब्लू मून’ स्कूल से लगा था | जब वहां बच्चों को आते जाते देखता तो मन तो उसका भी होता कि गिलास और केतली को फेंके और बस्ता लेकर दौड़ लगा दे ..लेकिन अगले पल ही मन मार लेता कि बाप का रिक्शा इतना मंहगा सपना नहीं ढो सकता | उसे किसी ने नहीं बताया कि आठवी तक मुफ्त शिक्षा उसका मूल अधिकार है और उससे इस उम्र में काम लेना अपराध | लेकिन मुड़हा को पैदा करके जैसे उसका बाप भूल गया वैसे ही सरकार भी कानून को बनाकर भूल गयी |
आज सुबह होटल में स्कूल के नौकर जब चाय पीने आये तो उनकी बात से मुड़हा ने जाना कि आज प्रधानमंत्री बच्चों की बड़े पर्दे पर क्लास लेंगे वो भी ग्राउंड में | और तभी से मुड़हा का मन भी मचल उठा .. ‘आखिर वे भी कभी चाय पिलाते थे मै भी चाय पिलाता हूँ ..|’
मौका देखकर मुड़हा स्कूल की तरफ सटक लिया लेकिन स्कूल पहुंचा तो गेट बंद था और दरवाजे पर वर्दी वाले यमराज को देखकर बची खुची हिम्मत भी टूट गयी | लेकिन सपना मचल रहा था सो दीवार के किनारे किनारे चलने लगा | एक जगह उसे लगा कि यदि टपरे की टेक ली जाये तो दीवार के पार झाँका जा सकता है और किस्मत से टपरा आज बंद भी था |
तो मुड़हा ने टपरे की टेक लेकर दीवार के पार झाँका | प्रधानमंत्री मंत्र दे रहे थे ... “मेहनत करो,तकदीर बदलेगी” ..| उसने मन्त्र दुहराया ही था कि भद्दी सी गाली के साथ उसके पिछवाड़े पर सटाक से कुछ लगा | पलटकर देखा तो मालिक था जो माँ-बहन एक करके पूछ रहा था ..वहाँ काम तेरा बाप करेगा ??
मुड़हा अपने पिछवाड़े सहलाता हुआ होटल की तरफ भागा ... मन्त्र उसके दिलो दिमाग में अब भी गूँज रहा था .. ... “मेहनत करो,तकदीर बदलेगी” .. ... “मेहनत करो,तकदीर बदलेगी” ..||||
ये मुढहा कौन ?
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