सूक्ष्म कथा : सम्मोहन
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मंच सजा हुआ था ..
रूपसज्जाकारों ने 'महाराजाधिराज' को सजा संवार कर देवोपम बना दिया था | वे सीखी हुई भंगिमाओं के साथ हाथ नचा नचा कर पवित्र मन्त्र दोहराने लगे | लाईट और कैमरे की चमक दमक भव्य सम्मोहन रच रहे थे |
जब वे जंगल में अमन और प्रेम के बारे में बोल रहे थे ... सामने बैठे एक मेमने को रुलाई छूट गयी ...जिसके परिवार को कुछ दिनों पहले ही 'महाराजाधिराज' के पालतू शिकारियों ने घेरकर मार डाला था | लेकिन मेमना जल्दी से अपने मुंह में रुमाल ठूसकर ताली बजाने लगा ...क्योंकि मंच के पीछे खड़े सियार उसे घूर रहे थे |
फिर 'महाराजाधिराज' दया ..अहिंसा ..... पर जोर जोर से बोलने लगे ...जब वे बोल रहे थे तो उनके दांतों के फंसा नर्म लाल गोश्त का टुकड़ा दिखायी दे रहा था लेकिन लोग उसे देखकर भी अनदेखा कर रहे थे क्योंकि सामने मंच पर पीछे खड़े सियार उन्हें घूरे जा रहे थे |
इधर भाषण के दौरान महाराजाधिराज ने बड़ा सा मुंह खोलकर जम्हाई ली कि एक चील तेज़ी से झपटी और दाँतो के बीच फँसा गोश्त का टुकड़ा ले उड़ी ..
महाराजाधिराज ...मंच पर पीछे खड़े सियार ..सभा सब सन्न रह गये |
अचानक महाराजाधिराज ने पहलू बदला ..
"देखिये हमारे जंगल की प्रिय चील भी शाकाहारी हो चुकी है अभी अभी उसने खाने के लिए मेरे दाँतों के बीच फँसे फल के टुकड़े को निकाला है और देखिये खा रही है ..." 'महाराजाधिराज' ने सुदूर क्षितिज की ओर इशारा करते हुए कहा |
सभा तालियों से गूंज उठी | सभा 'महाराजाधिराज' के सम्मोहन में बंध कर अपना विवेक खो चुकी थी |||||
on face book 15/8/2014
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मंच सजा हुआ था ..
रूपसज्जाकारों ने 'महाराजाधिराज' को सजा संवार कर देवोपम बना दिया था | वे सीखी हुई भंगिमाओं के साथ हाथ नचा नचा कर पवित्र मन्त्र दोहराने लगे | लाईट और कैमरे की चमक दमक भव्य सम्मोहन रच रहे थे |
जब वे जंगल में अमन और प्रेम के बारे में बोल रहे थे ... सामने बैठे एक मेमने को रुलाई छूट गयी ...जिसके परिवार को कुछ दिनों पहले ही 'महाराजाधिराज' के पालतू शिकारियों ने घेरकर मार डाला था | लेकिन मेमना जल्दी से अपने मुंह में रुमाल ठूसकर ताली बजाने लगा ...क्योंकि मंच के पीछे खड़े सियार उसे घूर रहे थे |
फिर 'महाराजाधिराज' दया ..अहिंसा ..... पर जोर जोर से बोलने लगे ...जब वे बोल रहे थे तो उनके दांतों के फंसा नर्म लाल गोश्त का टुकड़ा दिखायी दे रहा था लेकिन लोग उसे देखकर भी अनदेखा कर रहे थे क्योंकि सामने मंच पर पीछे खड़े सियार उन्हें घूरे जा रहे थे |
इधर भाषण के दौरान महाराजाधिराज ने बड़ा सा मुंह खोलकर जम्हाई ली कि एक चील तेज़ी से झपटी और दाँतो के बीच फँसा गोश्त का टुकड़ा ले उड़ी ..
महाराजाधिराज ...मंच पर पीछे खड़े सियार ..सभा सब सन्न रह गये |
अचानक महाराजाधिराज ने पहलू बदला ..
"देखिये हमारे जंगल की प्रिय चील भी शाकाहारी हो चुकी है अभी अभी उसने खाने के लिए मेरे दाँतों के बीच फँसे फल के टुकड़े को निकाला है और देखिये खा रही है ..." 'महाराजाधिराज' ने सुदूर क्षितिज की ओर इशारा करते हुए कहा |
सभा तालियों से गूंज उठी | सभा 'महाराजाधिराज' के सम्मोहन में बंध कर अपना विवेक खो चुकी थी |||||
on face book 15/8/2014
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