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progress (तरक्की )

तरक्की 
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बात उन दिनों की है जब इंसान चाँद पर बस्ती बना चुका था और लम्बी सुरंग में विस्फोट कर उसने सृष्टि के जन्म की गुत्थी सुलझा ली थी | यहाँ तक कि अब वह अपनी कोख में वापस लौटकर अपनी नाक आँख त्वचा का रंग फिर से डिजाइन कर सकता था | उसने अपने जानदार पुतले बना लिये और इस तरह वो अमर हो गया था |
उन दिनों ही चमचमाती सड़कों पर एक लड़का और एक लड़की घसीटते हुए लाये गए ...उन्होंने अपने कंधो पर अपने अपने जन्म से मिले सलीब उठा रखे थे ...
भीड़ ने नारों के बीच हुकुम दिया कि दोनों को अपने अपने सलीब की जगह उनके बनाये सलीब उठाने होंगे ...
दोनों कुछ बुदबुदाये | कोई कुछ समझ पाता की भीड़ शोर के साथ उन्हें संगसार करने लगी.
आसमान में उड़ते परिंदे ने देखा और सोचा .. “अच्छा हुआ हम इंसान ना हुए ...”
बगल से गुजरते हुए कुत्ते ने देखा और सोचा .. “अच्छा हुआ इंसान के साथ रहते हुए मुझे यह छूत अब तक नहीं लगी वर्ना ....”
सभ्य बनाने के लिए लाये गये एक नंगे वनवासी ने देखा तो यह सोच कर काँप गया कि सभ्य होने के लिए क्या उसे भी यह सब करना होगा ?
शैतान ने देखा तो यह सोचकर आसमान को थर्रा देने वाला अट्टहास किया कि इन्सान जैसे जैसे बाहर तरक्की करता गया .. भीतर ही भीतर उसे भी मज़बूत करता गया |
मोहब्बत उस दौर में जानलेवा बात थी ,
सियासत ,मज़हब,रवायत, शराफत सब उसकी घात में लगे थे ....|||

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झालर ************* मिलौनी गंज का आसमान शाम होते ही पतंगों से भर जाता और सुनहरी शाम सतरंगी हो जाती | पतंगें हम बच्चों के पँख थे जिनसे हम उड़ान भरते | लेकिन मै अपनी पतंग उडाया नहीं करता था ..तैराया करता था | दरअसल आसमान मेरा समन्दर था ....|| तो साहब , किस्म किस्म की ऊँची ऊँची पतंगों के बीच मेरी मामूली पतंग नीचे तैरती रहती लेकिन सारा मिलौनिगंज मेरी पतंग को  हसरत और शाबाशी भरी नज़रों से देखता रहता | वजह थी पतंग की झालर जिसे मैंने सुनहरी गोट से सजा रखा था | कोई उसे हनुमान की पूछ कहता तो कोई पतंग की चोटी.. लोगों की वाहवाही के साथ मेरी पतंग की झालर भी लंबी होती गयी | एक दिन मैंने देखा कि मिलौनी गंज  उस झिलमिल सितारों वाली झालर  के लिए वाहवाही कर रहा था , जिसे मै नहीं बल्कि चौधरी का लड़का उड़ा रहा था .... फिर क्या ? मैंने वाह वाही की होड़ में पतंग के साथ दो झालर लगा दी ...फिर तीन ..फिर ४ ...| मैं भूल गया था कि पतंग बराबर गोते खाकर नीचे आ रही थी ....| आखिर में झालर के बोझ से दबी पतंग गूलर के ऊँचे पेड़ पर जा फँसी ... मैंने उसे जब नीचे उतारा तो  झालरों  के अ

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