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खाना-खिलाना ( bribe - dishonesty )

सूक्ष्म कथा : खाना-खिलाना 
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“पहली बार देश को कर्रा नेता मिला है ...ना खाऊंगा ना खाने दूंगा ..
अब देखियेगा अपना इंडिया बहुत जल्दी पटरी पर आ जायेगा ..”
सहयात्रियों के सामने वे जोर जोर से बोले जा रहे थे कि उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि देर से टी.टी. ई उनसे टिकट माँग रहा था |
अचकाचाकर उन्होंने टिकट और अपना परिचय पत्र दोनों आगे किया |
“३१५ रूपये डिफ़रेंस भर दीजिये” टी टी ई ने रसीद बुक निकालते हुए कहा ...|
“आपने आई कार्ड नहीं देखा ..शायद ...इधर आइये जरा आपको बताता हूँ ..” बोलते हुए वे टी टी ई को गेट की तरफ ले गए |
लौटे तो हिसाब लगाया सिर्फ एक गांधी छाप चढ़ाना पडा यानी इस तरह से २१५ फिर भी नफे में रहे ..| उन्होंने जेब से हाजमोले की गोलियाँ निकाली और दो गोली मुँह में डालकर डिब्बी सहयात्री केसामने बढ़ा दी |
“साहब देश बचाना है तो भ्रष्टाचार मिटाना होगा वर्ना इससे अच्छी तो गुलामी थी ..अब किसी ना किसी को तो .....”.... खाने और खिलाने के बीच वे फिर से शुरू हो गये ..|

वे और ट्रेन दोनों रफ़्तार पकड चुके थे ||||


फेस बुक २१/ ८/ २०१४ 

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झालर ************* मिलौनी गंज का आसमान शाम होते ही पतंगों से भर जाता और सुनहरी शाम सतरंगी हो जाती | पतंगें हम बच्चों के पँख थे जिनसे हम उड़ान भरते | लेकिन मै अपनी पतंग उडाया नहीं करता था ..तैराया करता था | दरअसल आसमान मेरा समन्दर था ....|| तो साहब , किस्म किस्म की ऊँची ऊँची पतंगों के बीच मेरी मामूली पतंग नीचे तैरती रहती लेकिन सारा मिलौनिगंज मेरी पतंग को  हसरत और शाबाशी भरी नज़रों से देखता रहता | वजह थी पतंग की झालर जिसे मैंने सुनहरी गोट से सजा रखा था | कोई उसे हनुमान की पूछ कहता तो कोई पतंग की चोटी.. लोगों की वाहवाही के साथ मेरी पतंग की झालर भी लंबी होती गयी | एक दिन मैंने देखा कि मिलौनी गंज  उस झिलमिल सितारों वाली झालर  के लिए वाहवाही कर रहा था , जिसे मै नहीं बल्कि चौधरी का लड़का उड़ा रहा था .... फिर क्या ? मैंने वाह वाही की होड़ में पतंग के साथ दो झालर लगा दी ...फिर तीन ..फिर ४ ...| मैं भूल गया था कि पतंग बराबर गोते खाकर नीचे आ रही थी ....| आखिर में झालर के बोझ से दबी पतंग गूलर के ऊँचे पेड़ पर जा फँसी ... मैंने उसे जब नीचे उतारा तो  झालरों  के अ

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