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कीड़ा और अमन के रखवाले

कीड़ा
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बिटिया जोर से चिल्लाई ..'पापा ...' |
मै लपक कर पहुंचा तो गमले के पास डरी खड़ी थी |
उसने अंगुली का इशारा किया तो मैंने देखा एक जहरीला सा दिखता कीड़ा गमले के पीछा छिपा था |
उसे भगाना चाहा तो वो स्कूटर के पीछे जा छिपा , वहां से खदेड़ा तो जूतों के रेक के पीछे जा छिपा |
अंत में तय किया गया कि इससे पीछा छुड़ाने के लिए इसे मार ही डाला जाये |
जिस क्षण उसके सर को मै डंडे से कुचलने जा ही रहा था | ठीक उसी क्षण वहां यक्ष खड़ा हो गया |
यक्ष ने कहा " बेशक उसे मार डालो लेकिन पहले एक प्रश्न का जवाब दो क्या तुम उन जहरीले कीड़ो को भी ढूंढकर मार सकते हो जो कानून , धर्म , राष्ट्र , संस्कृति की आड़ में छिपे हैं ?"
मै निरुत्तर था |
अब वहाँ ना यक्ष था ना कीड़ा ||


अमन के रखवाले 
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उस गिरोह का दावा था कि वो अमन का  रखवाला  है |
चौराहों पर उनके बड़े-बड़े इश्तहार चिपके थे जिनमे में अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित अमन की अपील के साथ खड़े दिखते थे |

एक दिन दोपहर को सूरज डूब गया | खबर आयी कि उन्होंने शहर के उस नंगे फ़कीर को गोली मार दी जो गलियों में अमन के गीत गाता फिरता था |
तब पहली बार मेरा सामना उस गिरोह से हुआ
जब उन्होंने इस 'वध' पर प्रेस  वार्ता बुलाई जहां मैंने उनसे पत्रकार की हैसियत से कड़वे सवाल किये |

कड़वे सवालों को वे मीठे उत्तर के साथ  टाल गये | काण्ड की निंदा किये बगैर उन्होंने कहा कि इस काण्ड  से अपना सम्बन्ध होने से इनकार किया |
घर लौटते समय अँधेरे चौराहे पर  मुझे कुछ नकाबपोशों ने घेर लिया और मुझे मेरे परिवार का फोटो दिखाकर अंधरे में गुम हो गये |
अब अपने परिवार के अमन की ज़िम्मेदारी मुझ पर थी |
जिसे मै आज  भी पूरी शक्ति से निभा रहा हूँ ||

|| हनुमंत किशोर ||

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