तहखाना
इस तयखाने की जानकारी में
सिर्फ साहब और उनके चार सिपहसलार को ही
हैं |
छटवां सिर्फ मैं हूँ |
साहब के इस
तहखाने में ऐसे ऐसे राज़ हैं कि बाहर आ जायें तो
हंगामा हो जाये |
आप पूछे इसके पहले मै आपको बता दूँ कि
मै आपको कुछ बता नहीं सकता सिर्फ दिखा सकता हूँ वो भी अपने उन इशारों से जिन्हें आप
पढने की योग्यता शायद
नहीं रखते |
दरअसल मुझे इस विशेष तहखाने
तक पहुँचने के अवसर की योग्यता अपनी सिर्फ एक
जन्मजात अयोग्यता के कारण हासिल हो सकी है और वो है मेरा
जन्मजात गूंगा और अनपढ़ होना |
ना बोल सकता ना लिख सकता इसलिए कोई खतरा ना
समझकर साहब ने तहखाने में होने वाली गप्त वार्ताओं के समय अपनी और मंडली की सेवा के लिए
मेरा चयन किया | बोतल , सोडा , चखना , सिगरेट और
खाना परोसने भर तक मुझे वहां रहने
की इजाज़त होती है | बस उतने के दरम्यान जितना सुन-देख लेता उतना ही सुन-देख
कर ऊपर वाले से दुआ
करता हूँ कि मुझे बहरा और अंधा भी
कर दे तो तेरा
अहसान हो |
तो उस दिन जीत
का जश्न था ..साहब और उनके सिपहसालार
आकंठ नशे में डूबे थे |
नहीं बोतल तो अभी खुलनी
बाकी थी
..जीत का नशा ही उन्हें बहकाये दे रहा था |
‘अब हम उनकी फाड़ के रख देंगे’ मझले सिपहसलार ने अपनी जंघा उधेड़ कर ताल ठोंकते हुए कहा और वैसे ही
हँसा जैसे महाभारत में दुर्योधन सभा में द्रोपदी का चीरहरण करते
हँसा होगा |
साहब भी ठहाके
में शामिल हुए फिर उनका हाथ उठते ही खामोशी छा गयी
|
‘वो काम तो दुर्वासा कुमार
की प्रचंड जीत से अपने आप
हो गया ...अब समझदारी इस जीत को
टिकाऊ बनाने में है’ साहब ने अपनी पितामही दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए
समझाइश दी |
‘तो अब हमे क्या करना होगा ?’ लहुरे सिपहसालार ने उनके चरणों पर
झुकते हुए पूछा वैसे ही जैसे युद्ध
में जाने के पहले मेघनाद रावण के चरणों
में झुकता है |
साहब ने हल्की मुस्कान
के साथ तिरछी नज़रो से जेठे सिपहसालार की तरफ देखा जैसे मालिक अपने
वफादार शिकारी कुत्ते की तरफ देखता है |
जेठा सिपहसालार इस तिरछी नज़र
का भेद बताने की गरज से ज़रा तना और अपने सपाट सिर पर अंगुलियाँ घुमाते हुए बोला ‘बस
ज़रा अपने वचनों की आंच धीमी कर दो ... अब
मुर्गा हलाल हो चुका है ....हम उसे मद्धम आंच
में पकायेंगे थोड़ी थोड़ी अंगूरी मिलाकर ...स्वाद अच्छा आयेगा
... जरूरत हुई तो बर्नर घुमा कर आंच फिर तेज़
कर देंगे’
उसके बात समाप्त करते ही साहब
ने विशेष अंदाज़ में हाथ की मुद्रा बनायी और अट्टहास किया वैसे ही जैसे
शकुनी पांसे फेंकते हुए करता था |
उस रात तहखाने में मै इतना ही
देख –सुन सका था |
और मौकों की तुलना में मेरे लिए इसे समझना ज्यादा पेचीदा था |
आप बहुत पढ़े-लिखे हैं
...क्या आप इसे समझने में मेरी मदद करेंगे ?
राज योग
वातानुकूलित रथ रुका और
वे उतरे |
पूरे रास्ते नंगे-भूखे
बच्चे अपने हाथ में उनकी तस्वीर लेकर जैकारा करते खड़े थे |
तस्वीरों में वे शेर से लेकर गाय-बकरी सभी जानवरों के बच्चों को दूध पिलाते और दुलारते दिख रहे थे |
आँखों में रेबेन का चश्मा ,कलाई में रोलेक्स की सोने की चेन लगी
घड़ी , पांवो में होम मेड डिजाइनर खड़ाऊं , हाथों में एप्पल का मोबाइल और बदन पर
केसरिया बाना |
बस्ती की आँख फटी की फटी रह
गयी मानो वे सपने में किसी केसरिया राजकुमार को आता देख रहे हों |
केसरिया राजकुमार मनसुख मास्टर
के घर की तरफ सिंह के छौने की चाल से बढ़ चले |
वे मनसुख मास्टर तीसरी औलाद थे | जिन्हें मनसुख
मास्टर के परिवार ने उनके सब नखरे उठाकर पाला
था ,कारण कि रामनारायन शास्त्री ने उनकी जन्म पत्री विचारकर कहा था इसके राज योग
है |
सो मनसुख मास्टर का पूरा परिवार उस राजयोग की मलाई खाने के चक्कर में छांछ पीते
हुए तीसरे बेटे को दूध पिलाता रहा |
लेकिन जब कालेज के दूसरे बरस
ही फेल होते वे घर से कूच कर गये तो मनसुख मास्टर के परिवार के अरमानो की मानो चिता ही सज गयी |
दो बरस बाद जब काशी से लौटे
पड़ोसी ने खबर दी कि वे गेरुआ बाने में चिलम चढाते सिद्ध घाट पर
देखे गये तो मानो उस चिता में आग लग गयी |
मिसेज मनसुख तो शास्त्री जी
के घर पल्लू खोंसकर उलाहना देने भी पहुँच गयी थीं और जन्म पत्री बचवाने की जो दक्षिणा दी थी उसे फेरने की मांग भी कर बैठी
थीं |
उस बात को आठ साल हुए आज राजयोग
सिद्ध कर इधर वे अपने पुश्तेनी मकान में तख़्त पर मसनद पर टिके टीवी पर अपनी ही खबर देख रहे थे |
इस बीच मिसेज मनसुख मास्टर
ने दो किलो की मिठाई का
डिब्बा हज़ार रूपये रखकर शास्त्री जी के
घर रवाना कर दिया था |
उधर मनसुख मास्टर का पड़ोसी
अपने जवान लड़के को उलाहना दे रहा था
‘स्याला घर में
बैठकर मुफ्त की रोटी तोड़ता रहता है ...मनसुख के तीसरे लड़के से कुछ सीख ..कुछ
नही कर सकता तो चोला ही बदल ले ..’
जवान लड़के ने सुना और किताब में सिर गड़ा दिया ...उसकी जन्म पत्री में शायद राज योग नहीं था ||
||हनुमंत किशोर ||
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